भोपाल । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से जारी कोशिशों ने भले ही वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का एक मंच पर ला दिया हो, मगर दोनों के बीच दूरियां बरकरार हैं और दिल नहीं मिले हैं।
भाजपा द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के फैसले से आडवाणी खुश नहीं हैं। वे अपना विरोध तक दर्ज करा चुके हैं। आडवाणी की नाराजगी ने पार्टी की गुटबाजी को भी सतह पर ला दिया है। यह बात अलग है कि कोई नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है, क्योंकि मोदी के पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) खड़ा है।
मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद पार्टी का पहला बड़ा आयोजन बुधवार को भोपाल में था। इस आयोजन में मोदी के साथ आडवाणी को भी शामिल होना था। आडवाणी ‘कार्यकर्ता महाकुंभ’ में पहुंचे भी, मगर अपने हाव-भाव से मोदी से दूरी और नाराजगी जाहिर करने में भी पीछे नहीं रहे। आडवाणी ने मोदी के करीब बैठना तो दूर उनके साथ मंच पर खड़ा होना तक उचित नहीं समझा।
आयोजन के दौरान आडवाणी को जब भी मोदी के करीब आना पड़ा, उनके चेहरे पर असहजता साफ देखी गई। यह अलग बात है कि स्टेट हैंगर से मोदी और आडवाणी एक ही हेलीकाप्टर में आए थे।
मंच पर सभी नेता एक साथ पहुंचे तो आडवाणी ने मोदी से दूरी बढ़ाई, इसे देखते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह दोनों के बीच आ गए। बात बैठने की आई तो दोनों के बीच राजनाथ की कुर्सी थी। इतना ही नहीं जब सामूहिक तौर पर नेताओं को माला पहनाने का अवसर आया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आग्रह पर माला पहनने आडवाणी आगे की तरफ बढ़े मगर मोदी के करीब नहीं गए। इस पर राजनाथ फिर दोनों के बीच आए।
आडवाणी ने मंच पर मोदी को बुके भेंट किया, मोदी ने उस समय कोई खास गर्मजोशी नहीं दिखाई। इसके बाद शिवराज ने आडवाणी को बुके भेंट किए और उनके पैर छुए। उस समय मोदी की नजर दर्शकों की तरफ थी, और उन्होंने फिर अचानक आडवाणी का पैर छुआ। ऐसा लगा जैसे उन्होंने शिवराज का देखकर ऐसा किया। लेकिन इस समय आडवाणी की नजर दर्शकों की तरफ थी और उन्होंने मोदी को कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कुल मिलाकर मंच पर यह ऐसा दृश्य था, जिसने स्पष्ट कर दिया कि दोनों नेताओं के बीच दूरिया, दरार बरकरार है।
आडवाणी ने अपने उद्बोधन में चौहान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ ही मोदी की भी समान रूप से सराहना की। लेकिन मंच पर तो सारे दृश्य और भाव स्पष्ट थे, जिन्हें कोरे भाषणों से नहीं ढका जा सकता था।

 

 

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