भोपाल। प्रदेश में सत्ता बदलते ही मैदानी अफसरों के बड़ी संख्या में तबादले किए गए। अब सरकारी विभागों में सालों से एक ही स्थान पर जमे अधिकारी एवं कर्मचारियों की भी अदला-बदली होगी। संभवत: प्रदेश में आचार संहिता हटते ही प्रशासनिक सर्जरी शुरू हो जाएगी। इस सर्जरी में मंत्रालय एवं विभाग मुख्यालयों में सालों से एक ही कुर्सी पर जमे अधिकारी एवं कर्मचारियों केा भी हटाया जागए। इसको लेकर शासन स्तर पर रणनीति बन चुकी है। मैदानी में भी कुछ अफसरों की पदस्थापना होगी। यह कदम प्रशासनिक काम में कसावट के लिए उठाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री सचिवालय से लेकर अन्य विभागों में भी अफसरों की नए सिरे से जमावट होगी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद जिस तरह से योजनाओं की स्थिति को लेकर फीडबैक मिला है, उसको लेकर सरकार खफा है। सूत्रों के मुताबिक ऊर्जा, खाद्य, कृषि विभाग में बदलाव प्रस्तावित हैं। कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजौरा को उद्योग विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। उन्हें कृषि विभाग से मुक्त किया जा सकता है। वहीं, इस विभाग की बागडोर सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव अजीत केसरी को सौंपी जा सकती है। प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति नीलम शमी राव को नई जिम्मेदारी मिलने के संकेत हैं। बिजली कटौती को लेकर बीच चुनाव में हुई फजीहत का खामियाजा ऊर्जा विभाग के अफसरों को उठाना पड़ सकता है। सामान्य प्रशासन विभाग और मुख्यमंत्री सचिवालय में फेरबदल भी प्रस्तावित है।
दरअसल, सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव रश्मि अरुण शमी को स्कूल शिक्षा की जिम्मेदारी दी गई है। दोनों बड़े और महत्वपूर्ण विभाग हैं। आमतौर पर सामान्य प्रशासन की कार्मिक शाखा जिस प्रमुख सचिव के पास रहती है, उसके दूसरा काम नहीं सौंपा जाता है। इसी तरह मुख्यमंत्री सचिवालय में भी कुछ बदलाव हो सकता है। यहां पदस्थ अधिकारी भी यही अनुमान लगाकर बैठे हैं। यह भी संभावना जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ के भरोसेमंद अफसर संजय बंदोपाध्याय को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाया जा सकता है। चुनाव के बाद मंत्रियों से परामर्श करके मंत्रालय में अधिकारी भी बदले जाएंगे। मैदानी स्तर पर नए सिरे से जमावट होगी। इसके लिए कुछ कमिश्नर और कलेक्टरों के तबादले होंगे। इसके साथ ही सरकार फीडबैक लेने का तंत्र भी चुस्त-दुरुस्त करेगी। चाहे बिजली की समस्या हो या फिर कर्जमाफी से जुड़ी मैदानी शिकायतें, सरकार तक वैसी नहीं पहुंची, जैसी उम्मीद की जाती है। यही वजह है कि जब समस्या सतह पर आ गई तब सरकार एक्शन में आई और डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू हुई। यह कितनी कारगर रही यह तो चुनाव के बाद पता लगेगा पर इतना तय है कि इसका असर ब्यूरोक्रेसी पर जरूर पड़ेगा।