इंदौर। देश के सबसे बडे आचार्य विद्यासागर सहित 35 जैन संतों के संघ के आगमन पर सोमवार की पहली सुबह उदयनगर में आस्था के उल्लास से भरी रही। दो किलोमीटर के दायरे में आने वाली पांच कॉलोनियों के 250 परिवारों ने मन, वचन और काया की शुद्धता का ख्याल रखकर रसोई बनाई थी। चौके में जैन नियम के अनुसार कुएं के जल से सादा भोजन बनाकर संतों से आहार ग्रहण करने के लिए निवेदन किया। हालांकि आहारचर्या का सौभाग्य 35 परिवारों को मिला। 200 से ज्यादा परिवारों को संतों को आहार देने का अवसर नहीं मिला तो भी वे निराश नहीं हुए। उन्होंने कहा कि आज नहीं तो कल सौभाग्य मिलेगा। कल नहीं तो परसों मिलेगा या फिर पांच-दस दिन बाद मिल जाएगा।
सोमवार सुबह उदयनगर जैन मंदिर के आसपास आहार के लिए संतों से निवेदन करने वाले उदयनगर, वैभव नगर, अलोक नगर, सुखशांति नगर, गोयल नगर के सैकडों परिवारों के लोग मौजूद थे। संत भी अपने मन में संकल्प लेकर निकले थे कि जैसे जहां छोटा बच्चा नजर आएगा, उसी परिवार के यहां आहार लेंगे या जहां माता-पिता और पूरा परिवार साथ नजर आएगा, उनके यहीं आहार के लिए जाएंगे। संतों के आहार का सिलसिला क्षेत्र में सुबह 9 से 11.30 बजे तक चला।
जैन मुनियों के लिए आहार बनाने में विशेष मर्यादा रखनी होती है। भोजन में उपयोग किए अनाज 7, शक्कर 15 और मसाले 15 दिन के भीतर पिसे हुए होने चाहिए।
भोजन में उपयोग होने वाले जल के लिए भी मर्यादाएं हैं। आचार्य विद्यासागर के संघ के लिए कुएं जबकि पुलकसागरजी के संघ के लिए बोरिंग के जल से भोजन के निर्माण की मर्यादा है।
आहारदाता का प्रतिदिन देवदर्शन का नियम, रात्रि भोजन का त्याग, सप्त व्यसनों का त्याग व सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को मानने का नियम होना चाहिए।
जिनका आय का स्रोत हिंसात्मक व अनुचित यानि शराब का ठेका, जुआ, सट्टा खिलाना, कीटनाशक दवाएं, नशीली वस्तुएं और जूत्ते-चप्पल के निर्माण का व्यापार आदि नहीं हो।
उबले हुए उसी जल का इस्तेमाल होता है जो 24 घंटे के भीतर गर्म किया गया हो। इसके अलावा संतों का अपना संकल्प होता है, जिस अनुसार वे आहार के लिए परिवार का चयन करते हैं।
जिनके परिवार में जैनोत्तरों से विवाह संबंध न हुआ हो अथवा जिनके परिवार में विधवा विवाह संबंध न हुआ हो।
जो अपराध, दिवालिया, पुलिस केस, सामाजिक प्रतिबंध आदि से परे हो।
जो भ्रूण हत्या, गर्भपात करते/करवाते हैं एवं उसमें प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से सहभागी होते हैं, वे भी आहार देने के पात्र नहीं हैं।
शरीर में घाव हो या खून निकल रहा हो या बुखार, सर्दी-खांसी, कैंसर, टीबी, सफेद दाग आदि रोगों के होने पर आहार न दें।
नीचे देखकर ही साधु की परिक्रमा करें एवं परिक्रमा करते समय साधु की परछाई पर भी पैर नहीं पडे, इसका ध्यान रखें।
संतों को खाद्य सामग्री एक ही व्यक्ति दिखाए, जिसने चौके में काम किया हो और जिसे सभी जानकारी हो। साथ में एक खाली थाली भी हाथ में रहे।
महिलाएं एवं पुरुष सिर अवश्य ढांककर रखें जिससे बाल गिरने की आशंका नहीं रहे। शुद्धि बोलते समय हाथ जोड़कर धीरे से शुद्धि बोलें। आहार के दौरान मौन रहें।
साधु जब अंजलि में जल लेते हैं तो अधिकांशतः जल ठंडा होता है, तभी यदि साधु हाथ के अंगूठे से इशारा करें तो उन्हें पीने योग्य गर्म जल दें। इसमें सावधानी रखें कि साधु-संत के हाथ नहीं जलें।