इंदौर ! सदियों से समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रहकर (गाँव बाहर अपनी बस्तियों में जिंदगी बसर करने को मजबूर) कंजर समाज के दिन अब बदल गए हैं। पुलिस की आमदरफ्त से खौफ में रहने वाले इन बदनाम बस्तियों में अब बच्चे अ अपराध की जगह अ अनार का पढ़ रहे हैं। आज़ादी के पहले से अभी दस सालों पहले तक कंजर डेरों के युवाओं का नाम बिना अपराध किए भी पुलिस डायरियों में दर्ज हुआ करते थे और हर रात इनकी हाजरी लगती थी। उस समाज के बच्चे अब खुद पुलिस, वकील, इंजिनीयरिंग, शिक्षक सहित जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे पदों पर पंहुच रहे हैं।
इंदौर से करीब सवा सौ किमी दूर शाजापुर और देवास जिले की सीमा पर पीपलरावां नगर से बाहर एक बस्ती में हमारी गाड़ी के चक्के थमते हैं तो शाम का धुंधलका फैलने को है। इसी बस्ती के एक टूटे-फूटे घर के दरवाजे पर बैठी 5 साल की बच्ची दोहराती है- अ अनार का… आ आम का। पास जाकर पूछने पर वह अपना नाम ख़ुशी बताती है। वह उत्साह से बताती है कि उसी बस्ती के स्कूल में वह पहली में पढती है। वह हमें टूटी- फूटी हिन्दी में अमर घर चल… का पाठ भी सुनाती है। आसपास अँधेरा घिर रहा है पर हमें लगता है कि इन बच्चों की जिंदगी की अँधेरी गलियों में उजाला भर गया है। यह वही कंजर डेरा है, जहाँ के ज्यादातर लोगों को पुलिस अपराधी समझ कर आए दिन इनके घरों की तलाशी लेती थी। कभी रोटी की ज़रूरत ने इन्हें अपराधों की काली दुनिया और वहाँ से जेल की अंधी कोठरियों में पंहुचा दिया था। पुलिस रिकार्ड में इनके नाम हिस्ट्रीशीटर के रूप में दर्ज होते रहे हैं।
पर अब हालात तेज़ी से बदल रहे हैं। पीपलरावां कंजर डेरा प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका रश्मि नागर बताती है कि यहाँ 9 लडक़े और 25 लडक़े पढ़ रहे हैं। वैसे बस्ती में दो सौ बच्चे हैं। इनमें कोई ऐसा नहीं, जो पढने नहीं जा रहा हो। बाक़ी बच्चे आसपास निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं। 1999 में यहाँ शिक्षा गारंटी स्कूल शुरू हुआ था, तब 36 बच्चे दर्ज थे। तब से अब तक सैकड़ों बच्चे पढ़ चुके हैं। उनमें से कुछ अब इंदौर के इंजीनीयरिंग कालेज में भी पढ़ रहे हैं। यहीं का विद्यार्थी बिट्टू अमरसिंह जब पुलिस की वर्दी में यहाँ आता है तो बड़े- बूढों की आँखों में बीती जिंदगी के दु:ख झिलमिला उठते हैं।
शुरुआत में चबूतरे पर बच्चे पढ़ते थे पर अब नये स्कूल भवन में कक्षाएं लगती हैं। कुछ सालों पहले ही दो लाख की लागत से अतिरिक्त कक्ष भी बनाया गया है। पीपलरावां ही नहीं कुम्हारिया बनवीर, सीखेडी, धानी घाटी, चिड़ावद और टोंककला कंजर डेरों पर भी ऐसे ही स्कूल हैं। सीखेडी में तो इसी समाज की सुखमणी हाडा बच्चों को पढाती है। पुलिस रिकार्ड भी तस्दीक करता है कि अब इलाके में कंजरों के किए जाने वाले अपराधों में तेजी से कमी आई है। पहले यहाँ के 85 फ़ीसदी युवाओं के नाम पुलिस में दर्ज थे लेकिन अब 15 -20 फीसदी ही रह गए हैं।