ग्वालियर। मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार जरुर बन गई है, लेकिन कांग्रेस के मंत्री विधायकों में गुटवाजी चरम पर है। कोई भी विधायक, मंत्री किसी के भी खिलाफ कुछ भी आरोप लगा दे उसे रोकने वाला कोई नहीं है। मतलब सरकार का मुखिया तो है पर उसे कोई मुखिया मानने को तैयार नहीं है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की गुटवाजी इतनी बुरी तरह हावी है कि कांग्रेस हाईकमान भी कुछ नहीं कर पा रहा है। सही बात ये भी है कि कांग्रेस हाईकमान अपने आप में ही उलझा हुआ है।

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद की लड़ाई अब प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया इस पद के लिए काफी गंभीर हैं और मुख्यमंत्री कैंडिडेट पद से 2 बार समझौता करने के बाद अब किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं। इधर कमलनाथ की कलाबाजियां और दिग्विजय सिंह की जादूगरी भी कमजोर नहीं है। एक बार फिर वर्चस्व का टकराव शुरू हुआ है। 1960 के दशक में भी ऐसा ही कुछ हुआ था और राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस की चलती सरकार गिरा दी थी। सवाल यह है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के मन में भी ऐसा ही कोई प्लान है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के मौन ने अब इस लड़ाई को उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने दावा किया है कि वो नाराज नहीं हैं, परंतु ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस बारे में अब तक कुछ नहीं बोला है। अब तक कहा जा रहा था कि उनके समर्थक चाहते हैं कि वो प्रदेश अध्यक्ष बनें परंतु अब दिल्ली से स्पष्ट खबर आई है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद अपनी दावेदारी पेश की है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया पर इस बार भी दोनों तरफ से हमला हुआ। दिग्विजय सिंह ने सिंधिया के सामने अजय सिंह राहुल को उतारकर लड़ाई को कठिन बनाया तो कमलनाथ ने भोपाल से दिल्ली के लिए उड़ान भरी, सोनिया गांधी से मिले तो प्रदेश अध्यक्ष पद का फैसला ही टाल दिया गया। उम्मीद थी कि इसके बाद सबकुछ शांत हो जाएगा परंतु ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। क्या कमलनाथ की टालने वाली पॉलिटिक्स इस बार भी कामयाब हो पाएगी।

कांग्रेस में माधवराव सिंधिया के पास भी विरोधियों की कमी नहीं थी। मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह से लेकर दिल्ली में पी. व्ही. नरसिम्हाराव तक दमदार विरोधियों की लम्बी लिस्ट थी। अर्जुन सिंह ने माधवराव सिंधिया को कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। हवाला घोटाला में जब माधवराव सिंधिया का नाम आया तो सारे नेता एक साथ हमलावर हो गए। माधवराव सिंधिया ने पहले मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया फिर कांग्रेस से भी इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी बनाई थी, नाम था मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस। इस पार्टी के बैनर तले वो चुनाव लड़े और जीते भी।

माधवराव और ज्योतिरादित्य सिंधिया की कहानी बिल्कुल एक जैसी है, बस पात्रों के नाम बदल गए हैं। माधवराव, राजीव गांधी के दोस्त थे। ज्योतिरादित्य, राहुल गांधी के मित्र हैं। माधवराव को अर्जुन सिंह ने कभी प्रदेश में ताकतवर नहीं होने दिया, ज्योतिरादित्य को दिग्विजय सिंह कभी पॉवर में नहीं आने देते। मध्यप्रदेश में माधवराव सिंधिया विरोधियों का गुट हमेशा सबसे बड़ा और शक्तिशाली रहा। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरोधियों का गुट भी सबसे बड़ा और शक्तिशाली है।

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