रिश्वत लेने और देने दोनों को ही अपराध की श्रेणी में लाने वाले ‘भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक 2018’ मंगलवार को लोकसभा में भी पास हो गया. संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा ने इसे पिछले हफ्ते ही पास कर दिया था.

‘भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक 1988’ के कई प्रावधानों में संशोधन के लिए 19 अगस्त 2013 को राज्यसभा में यह विधेयक पेश किया गया था. तब राज्यसभा से इस विधेयक को छानबीन संबंधी संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया. फिर स्थायी समिति की रिपोर्ट मिलने पर इसे राज्यसभा की प्रवर समिति को सौंप दिया गया. इसके बाद प्रवर समिति ने 12 अगस्त 2016 को इस पर अपनी रिपोर्ट पेश की.

केंद्र सरकार ने इस साल चार अप्रैल को राज्यसभा में भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक को पेश किया जिसे उसने पिछले हफ्ते 19 जुलाई को पास कर दिया.

भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक में अहम बदलाव

-इस विधेयक के जरिए भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक-1988 में ढेरों संशोधन किए गए हैं. विधेयक के अनुसार, लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल और राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी.

-अब तक सरकारी कर्मचारियों पर रिश्वत लेने का आरोप तय होने के बाद 6 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल की सजा दिए जाने का प्रावधान था, जिसमें अब बदलाव करते हुए कारावास की सीमा बढ़ाकर 3 से 7 साल तक कर दी गई है.

-कानून के मुताबिक अब तक रिश्वत लेना ही अपराध माना जाता था, लेकिन अब रिश्वत देना भी अपराध की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है. अपने फायदे या अप्रत्यक्ष रूप से काम को प्रभावित करने के लिए रिश्वत देने के आरोपी पर 3 से लेकर 7 साल तक जेल और जुर्माना लगाया जा सकेगा.

-नए संशोधन के तहत अब किसी बिचौलिए या तीसरे पक्ष के जरिए रिश्वत लेना भी अपराध माना जाएगा और दोषी को सजा दी जाएगी.

-अगर ऐसे किसी संगठन की ओर से अपने व्यवसाय में लाभ के मकसद से किसी सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देते हुए पाया जाता है तो रिश्वत की पेशकश करने वाली कंपनी का कर्मचारी तो दोषी माना ही जाएगा, साथ में कंपनी का मालिक भी दोषी करार दिया जाएगा और उस पर 3 से 7 साल तक के लिए जेल और जुर्माना लगाया जा सकेगा. हालांकि संगठन और उसके मालिक पर आरोप सिद्ध नहीं होने की सूरत में उसे रिश्वत का दोषी नहीं माना जाएगा.

-अब तक रिश्वत के लिए भी उकसाना दंडनीय अपराध माना जाता था, और इसके लिए 6 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान किया गया था, लेकिन अब संशोधन के बाद सभी अपराधों के लिए उकसाने को दंडनीय अपराध माना जाएगा, और आरोप सिद्ध होने के बाद आरोपी को 3 से 7 साल तक की सजा दी जाएगी.

-कानून के मुताबिक लगातार घूंस लेने या अवैध तरीके से प्रॉपर्टी पर कब्जा जमाने वाले को क्रिमिनल ऑफेंडर माना जाता था, लेकिन नए संशोधन के मुताबिक सौंपी गई प्रॉपर्टी पर धोखे से कब्जा करना या फिर अवैध तरीकों से संसाधनों को अपने पास रखने वाले को दोषी माना जाएगा. लगातार ऐसे अपराध करने वाले दोषी को 3 से लेकर 10 साल की जेल की सजा दी सकेगी.

-संशोधित बिल के अनुसार, पुलिस अब ऐसे किसी भी सरकारी कर्मचारी की संपति कुर्क कर सकती है जिसे उसने गलत तरीके से अर्जित की हो. हालांकि पुलिस को ऐसा करने से पहले कोर्ट का आदेश लेना होगा, साथ ही सरकारी अनुमति भी लेनी होगी.

-अब तक के कानून के मुताबिक केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति लिए बगैर सरकारी कर्मचारियों पर कोई केस नहीं चलाया जा सकेगा, लेकिन संशोधित कानून के तहत उन सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को भी इस प्रावधान में लाया गया है, जिनके सेवाकाल के दौरान ऐसी घटना घटी हो.

-अब तक के कानून के मुताबिक, किसी सरकारी कर्मचारी पर यह आरोप साबित हो जाना कि उसने अपने लिए या फिर किसी और के लिए अपराध किया है, तो माना जाता है कि ऐसा उसने अपने सरकारी उत्तरदायित्व का गलत इस्तेमाल करने के लिए किया था. अब तक इसमें रिश्वत लेने, व्यावसायिक प्रक्रियाओं और आपराधिक दुर्व्यवहार के अलावा लेन-देन के मामले शामिल होते थे, लेकिन अब सिर्फ घूंस लेने का मामला ही इसमें शामिल किया जाएगा और इसके आधार पर ही सजा दी जाएगी.

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