सोनागिर। मानव शरीर रोगों का घर व मलमूत्र का पिटारा है। शरीर के लिए ही सब भोग कर रहे हैं। वैराग्य और त्याग की ओर जाकर इच्छाओं का दमन करने वाला संसार में सबसे सुखी है। सुख का खजाना चाहिए तो जीवन में त्याग करना आवश्यक है। यह बात क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर ने सोनागिर स्थित अमोल वाली धर्मशाला में पर्यूषण के नौवें दिन उत्तम त्याग धर्म के अवसर पर कही।
मुनिश्री ने कहा कि एक मां अपने बेटे के गुड़ खाने की आदत से परेशान थी। एक बार मॉ उसे मुनि महाराज के पास ले गई और कहा कि महाराज हमारा बेटा गुड़ खाता है, उसका त्याग करा दे। महाराज ने कहा कि आठ दिन बाद आना आठ दिन बाद फिर पहुंची तो मुनि महाराज ने बालक से कहा कि आज से गुड़ का त्याग करना होगा। बालक ने गुड़ का त्याग कर दिया।

मां ने मुनि महाराज से पूछा कि यह बात तो आठ दिन पहले भी कह सकते थे, तो महाराज ने कहा कि मुझे भी गुड़ सबसे प्रिय है लेकिन मैं स्वयं खाता रहूं और दूसरों को उपदेश देता रहूं। सबसे पहले मैने गुड़ का त्याग किया उसके बाद दूसरों को उपदेश देने के काबिल हुआ हूं।

मुनिश्री ने कहा कि जीवन में संचय के बजाय त्याग करना सीखो, वही सबसे बड़ा पुण्य है। जैसे समुद्र में पूरे संसार की नदियों का पानी एकत्रित होता है। वह एक संचय है फिर भी वह खारा होता है। लेकिन नदी बहती रहती है और उसका पानी बहने तक तो मीठा रहता है।

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