इंदौर ! एक महीने पहले तक उज्जैन सिंहस्थ में क्षिप्रा नदी के पानी की सफाई लगातार की जा रही थी, लेकिन सिंहस्थ निपटने के बाद से ही प्रशासन ने इस पर ध्यान देना बंद कर दिया है। इससे नदी का पानी फिर से प्रदूषित होने लगा है। यहाँ तक कि घाटों पर हजारों मछलियों के मरने से बदबू फ़ैल रही है। यहाँ नदी की सफाई के लिए दस करोड़ रूपए की लागत से संयंत्र लगे गए थे लेकिन वे भी अब नहीं हैं।
उज्जैन में क्षिप्रा नदी की हालत बीते एक महीने में फिर बदतर हो गई है. सिंहस्थ में साफ़ पानी के लिए तमाम जद्दोजहद की गई थी पर अभी सिंहस्थ निपटे एक महीने का ही वक्त हुआ है। सिंहस्थ में यहाँ 9.50 करोड़ की लागत से ओज़ोनाइजेशन संयंत्र लगाए गए थे, इन्हें हटा लेने और प्रदूषित खान नदी का पानी फिर से क्षिप्रा में मिलने से पानी इतना गंदा हो गया है कि बड़ी तादात में मछलियों की मौत हो रही है। पानी में घुलनशील ओक्सीजन की मात्रा कम हो गई है। लाल पुल से चक्रतीर्थ तक घाटो पर मरी हुई मछलियाँ पड़ी हैं। इन्हें घाटों पर ही छोड़ दिया गया है, जिससे बदबू फ़ैल रही है. वहीँ कुछ लोग इन्हें बाज़ार में बेच रहे हैं, इससे बीमारियाँ फैलने का खतरा बढ़ गया है। उज्जैन के रहवासी बताते हैं कि कुछ गंदे नालों का पानी सिंहस्थ में क्षिप्रा में आने से रोक दिया गया था, जो अब फिर से नदी में मिलने लगे हैं। यही नहीं नदी के प्रवाह क्षेत्र में भी कई गंदे प्रदूषित नदी -नालों का पानी आ रहा है। खान नदी का पानी क्षिप्रा में मिलाने से बचाने के लिए उसे उज्जैन की सीमा से बाहर निकालने के लिए 75 करोड़ रूपए की महती योजना बनाई गई थी, पर बारिश शुरू होते ही इसका पानी बेरोकटोक क्षिप्रा में आ रहा है। घाटों की सफाई नहीं हो रही है। तीर्थ पंडा पुरोहित संघ के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने बताया कि बदबू के बीच क्षिप्रा आरती करना पड रही है। क्षिप्रा के लिए सिंहस्थ के बाद एक महीने में ही नदी को उसके हाल पर छोड़ दिया गया। नालों और खान का गंदा पानी सरेआम मिल रहा है. पशु चिकित्सक भी मानते हैं कि प्रदूषण की वजह से पानी में घुलनशील आक्सीजन की कमी का असर संवेदनशील मछलियों पर हुआ है।

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