रंगबिरंगी स्कूल बिल्डिंग। हाउस के अनुसार लाल, नीली, पीली और सफेद यूनिफॉर्म पहने विद्यार्थी। कोई लाइब्रेरी में कहानियां पढ़ रहे थे तो कोई कम्प्यूटर और लैपटॉप से पढ़ाई। कहीं अखबारों का कॉर्नर है तो कहीं पत्र-पत्रिकाएं और देश-विदेश से जुड़ी सामग्री की जानकारी। यह पढ़कर किसी सर्वसुविधायुक्त निजी स्कूल की कल्पना होना स्वाभाविक है, लेकिन यह सब चलता है परदेशीपुरा क्षेत्र के कुलकर्णी भट्टा स्थित माध्यमिक सरकारी स्कूल में।
सुविधा नहीं मिलने का रोना रोने वाले सरकारी स्कूलों के लिए यह स्कूल मिसाल है। यह न तो सुविधाओं में और न पढ़ाई में प्राइवेट स्कूलों से पीछे है। स्कूल में बच्चों के दिन की शुरुआत ही यहां कुछ खास तरीके से होती है।
प्रार्थना सभा में बच्चे खुद हारमोनियम, तबला, ढोलक और बैंड के साथ पहुंचते हैं। शास्त्रीय संगीत पर आधारित प्रार्थना में बच्चों को सुनने के लिए अभिभावक और आसपास के रहवासी भी पहुंच जाते हैं। शिक्षकों के प्रयास से यहां सरकारी सुविधा के साथ-साथ जनसहयोग का फायदा लिया जा रहा है। जनता से स्कूल के लिए कम्प्यूटर, लैपटॉप, बैंच, पंखे, टेबल- कुर्सियां दान में मिल रही है।
विद्यार्थी बन चुके हैं डॉक्टर-इंजीनियर
वर्ष 2000 से संचालित इस स्कूल में शुरुआत में 45 बच्चे थे जो अब 400 हो चुके हैं। यहां प्रयोगशाला भी है। बच्चे बगीचे में बागवानी भी करते हैं और अलग-अलग पौधे लाकर लगाते हैं। प्रधानाध्यापक अनुलता सिंह और शिक्षक राजेंद्र आचार्य ने बताया इच्छाशक्ति के कारण स्कूल कुछ अलग तरीके से संचालित हो पा रहा है। यहां 12 शिक्षकों का स्टाफ है जो समर्पण भाव से लगे हैं। यहां से पढ़कर निकले विद्यार्थी सीए, इंजीनियर, डॉक्टर आदि हैं।