नई दिल्ली। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भारी वृद्धि की घोषणा करने के बाद सरकार किसानों की उपज की खरीद सुनिश्चित करने में जुट गई है। समर्थन मूल्य के बाद पैदावार की व्यापक खरीद अथवा इसका लाभ सभी किसानों को दिलाने की दिशा में प्रस्तावित खरीद गारंटी योजना पर सरकार विचार कर रही है। सरकार में इसे लेकर कई उच्च स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं।
किसानों के हित में केंद्र के साथ राज्यों को भी मिलाना होगा हाथ
एमएसपी में होने वाली वृद्धि का फिलहाल लाभ सीमित किसानों तक ही पहुंचता है। जिन राज्यों में सरकारी खरीद प्रणाली है, उन्हें ही इसका फायदा हो सकता है, लेकिन सरकार ने एमएसपी का लाभ सभी किसानों तक पहुंचाने का वादा किया था, जिसे पूरा करने के लिए खरीद प्रणाली व्यापक बनाने के लिए अहम बदलाव करने की जरूरत है। इसके लिए राज्य सरकारों को भी साथ खड़ा होना होगा, जिसके तहत मंडी कानून समेत कई और कानूनों में संशोधन करना होगा।
प्रस्तावित उपज खरीद गारंटी योजना को लेकर हो चुकी कई बैठकें
सूत्रों के मुताबिक कृषि उपज की प्रस्तावित खरीद गारंटी योजना मौजूदा खरीद प्रणाली से अलग और व्यापक होगी। प्रस्तावित प्रणाली के मसौदे में मंडियों में निजी व्यापारियों को खुले बाजार के भावों पर बेची जाने वाली जिंसों का ब्यौरा होगा। इसमें एमएसपी और बाजार के अंतर को किसानों के खाते में जमा कराया जाएगा। मूल्य के अंतर वाली धनराशि को केंद्र व राज्यों को संयुक्त रूप से वहन करना पड़ सकता है।
नई खरीद प्रणाली की रुपरेखा तैयार करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में नौ वरिष्ठ मंत्रियों का एक समूह गठित किया गया था। मंत्री समूह ने सिफारिशें पेश कर दी है। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर उन सिफारिशों पर अभी मुहर नहीं लग पाई है। मंगलवार की शाम को प्रधानमंत्री कार्यालय में इसी मुद्दे पर एक और बैठक बुलाई गई थी, जिसमें इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया।
सूत्रों का कहना है कि कृषि पैदावार का उचित मूल्य दिलाने के लिए चीनी की तर्ज पर सरकार न्यूनतम खरीद मूल्य निश्चित कर दे। ताकि निर्धारित मूल्य से नीचे खरीद बिक्री न हो सके। लेकिन यह प्रावधान चीनी के माफिक सभी जिंसों पर लागू करना आसान नहीं होगा। फिलहाल खाद्य मंत्रालय खाद्य सुरक्षा कानून पर अमल के लिए 6.11 करोड़ टन चावल व गेहूं की खरीद करता है। जबकि दालों की महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार ने दो साल पहले दालों का बफर स्टॉक बनाने का फैसला किया। इसके लिए सरकारी एजेंसी नैफेड और कुछ राज्य एजेंसियां खरीद करती हैं। जबकि मोटे अनाज की खरीद के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है।