ग्वालियर। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के जन्म दिवस पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय अंतर्गत कृषि महाविधालय ग्वालियर प्रांगण में कृषि शिक्षा दिवस एग्रीकल्चर एजुकेशन डे तीन दिसंबर को मनाया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में रिटायर्ड प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष मृदा विज्ञान डॉ. सुरेश चंन्द्र शर्मा मंचासीन थे। संचालक प्रक्षेत्र कृषि विश्वविधालय डॉ. जे. पी दीक्षित ने अध्यक्षता की एवं विशेष अतिथि के रुप में ब्रहमाकुमारी संस्थान की बी.के.चेतना मंचासीन थीं।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. शर्मा ने कहा कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे जो कि भारतीय संविधान आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे। इन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था। पूरे देश में अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। बारह वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात उन्होंने 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। उन्हें भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। उनकी वेशभूषा बड़ी सरल थी एवं देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे। वे भारत में शिक्षा एवं कृषि क्षेत्र के प्रकाण्ड विद्वानों में से एक थे।
डॉ. शर्मा ने युवाओं को स्वामी विवेकानन्द का साहित्य पढऩे के लिये प्रेरित करते हुए कहा कि युवाओं में खुद के प्रति, समाज के प्रति जिम्मेदारी का ज्ञान होना चाहिए। आज जरुरत है कि देश में कृषि उत्पादन भी बढ़े व साथ ही साथ युवाओं में चेतना का भी विकास हो। स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिये गए विचार “पवित्रता ही सबसे बड़ी शक्ति है ” को विस्तार से समझाते हुये उन्होंने कहा कि सफलता के लिये पहले खुद में विचारों की पवित्रता आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि ब्रहमाकुमारीज संस्थान की बीके चेतना ने छात्रों को स्व अनुभूति कराते हुए समझाया कि हम आत्मा हैं ना कि शरीर। आत्मा ही शरीर के द्वारा पढ़ती है। आत्मा ही व्यक्ति है जो कि शरीर के द्वारा व्यक्त करती है। हम सभी आत्मा ही हैं अभी कोई नर शरीर है तो कोई मादा शरीर मे है। यह आत्मा ही कर्म करती है शरीर द्वारा। शक्तिशाली आत्मा अच्छे कर्म करती व कमजोर आत्मा बुरे कर्म करती है। आत्मा को शक्ति अपने पिता परमात्मा से मिलती रहती है। हम पहले जब स्वंय को स्पिरिट (आत्मा) समझने लगेंगे तभी परमात्मा से शक्ति मिलना शुरु होगी। उन्होंने ओइम् शब्द का अर्थ बताते हुए कहा कि इसका अर्थ है मैं आत्मा। आत्मा का मूल स्वभाव होता ही है शांत इसलिये मन्त्र का नाम है ओइम् शांति। कार्यक्रम में चेतना बहन ने बताया कि सम्मान,प्रेम,शांति पाने के पहले देना होता है। आज हर कोई लेना चाह रहा देना नहीं। भगवान हमें देना सिखाते हैं।
इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के मानवीय मूल्य विषय के शिक्षक डॉ. प्रभाकर शर्मा ने विचारों के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे द्वारा निर्मित विचारों का हमारे शरीर एवं प्रकृति पर गहरा असर पड़ता है। बाहर के वातावरण में आए प्रदूषण के साथ-साथ मन में आए प्रदूषण पर भी ध्यान देना चाहिए। हमेशा सकारात्मक विचार पैदा कर मन एवं प्रकृति में आई उथल-पुथल को कम किया जा सकता है।
कार्यक्रम में डॉ. जे.पी. दीक्षित संचालक प्रक्षेत्र ने कहा कि आज इस महत्वपूर्ण कृषि शिक्षा दिवस के दिन छात्रों से अपेक्षा है कि अपनी कम से कम तीन कमजोरियों को छोडऩे के लिये प्रतिज्ञा करें। आज युवाओं में तम्वाकू सेवन बढ़ता जा रहा है जिसका विषैला प्रभाव उनके मन में पड़ रहा है। इससे धैर्यशीलता का गुण कम होता जा रहा है। उन्होने अन्न का प्रभाव कैसे मन पर पड़ता है उसके बारे में छात्रों को समझाया कि सात्विक अन्न खाने से मन में शांति, प्रेम बढ़ता है जबकि तामसिक अन्न से मन में क्रोध, नफरत बढ़ती है। हमारे मन में उठ रहे विचारों का सीधा-सीधा संबध हमारे भोजन से है। जीवन में सुख-शांति के लिये शाकाहार भोजन की अहम भूमिका है।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्र राम पाटीदार, आयुषी तिवारी, सुयश पाण्डे, चेतन्या, कृष्णा पाटीदार, संदीप आर्य, सानू पाण्डे, मोनिका झा, एवं दिशा यादव ने भी संक्षेप में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। अंन्त में छात्रों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। इनमें Óकृषि शिक्षा दिवसÓ, Óडॉ. राजेन्द्र प्रसादÓ संबंधी जानकारी गीतों एवं कविताओं के माध्यम से श्रोताओं तक पहुंचाई गई। कार्यक्रम का संचालन छात्र अक्षत गुप्ता एवं प्रतिभा गुप्ता ने किया एवं मार्गदर्शन अधिष्ठाता डॉ. जे.एस.रघुवंशी द्वारा दिया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. रीति सिंह प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पौधरोग विभाग, डॉ. राजसिंह कुशवाह, प्रमुख कृषि विज्ञान केन्द्र, डॉ. एस.के.सिंह, डॉ.वाई.पी.सिंह, शिवनारायण कुशवाह, कालका खरे, बालकिशन, मुनेश परिहार का विशेष योगदान रहा।