नई दिल्ली। आजाद भारत में यानि 1947 के बाद देश में किसी महिला को अब तक फांसी की सजा नहीं सुनाई गई है। लेकिन अगर इस बार शबनम को माफी की राहत नहीं मिली तो वह आजादी के बाद पहली ऐसी महिला होगी, जिसे फांसी की सजा दी जाएगी। शबनम के सिर पर अपने ही परिवार के 7 लोगों के खून का दोष है, इसमें उसका प्रेमी सलीम भी शामिल था। फिलहाल वो जेल में है और अपनी फांसी के फरमान की आहट सुन रही है।
दरअसल, अमरोहा की जिला अदालत ने 2010 में दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा दी थी। 2015 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से भी 11 अगस्त 2016 को शबनम की दया याचिका को ठुकरा दिया गया था।
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से शबनम की फांसी की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई थी। फिलहाल शबनम रामपुर जेल में बंद है। अब शबनम से राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास अपनी याचिका भिजवाई है तो वहीं उसके बेटे ने भी राष्ट्रपति से मां के लिए दया की गुहार लगाई है। शबनम का बेटा नाबालिग है और मां से मिलने जेल जाता रहता है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी नागरिक अपराधी के लिए राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता है। इसके अलावा संबंधित राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकती है। राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं। ऐसे में शबनम अब भी इन विकल्पों को चुन सकती है।
इन दो अपीलों के बाद शबनम के पास फिलहाल उम्मीद बची है कि शायद उसे राष्ट्रपति से राहत मिल जाए। हालांकि अगर राष्ट्रपति रिव्यू पिटिशन में फैसला बरकरार रखते हैं तो शबनम को फांसी हो जाएगी और आजाद भारत में फांसी की सजा पाने वाली वो पहली महिला होगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शबनम का डेथ वारंट कभी भी जारी हो सकता है। शबनम को आभास हो गया है कि मौत का फरमान कभी भी आ सकता है। कहा जाता है कि आजकल वह जेल में चुपचाप रहती है। किसी से ज्यादा बात नहीं करती है। इससे पहले वह जेल की महिलाओं को सिलाई सिखाती थी और उनके बच्चों को भी पढ़ाती थी।