भोपाल । कहा जाता है- नाम में क्या रखा है! मगर मध्यप्रदेश का एक परीक्षा बोर्ड इस कदर बदनाम है कि यहां की भाजपा सरकार इसका नाम बदलकर जल्द से जल्द अपने दामन पर लगा दाग धो लेना चाहती है। जल्दी इतनी है कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) का नाम बदलने के लिए सरकार अध्यादेश तक ला सकती है। वर्षो पहले हुए व्यापमं घोटाले की स्थानीय एजेंसियों से जांच जब तक कच्छप गति से चलती रही, सरकार चैन की बंसी बजाती रही। अब मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपे जाने से जांच की आंच ने सत्ता में बैठे लोगों को इस कदर बेचैन कर दिया है कि वे ‘व्यापमं’ नाम से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। व्यापमं घोटाले का खुलासा 7 जुलाई, 2013 को हुआ था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोटाले के खुलासे का श्रेय खुद को देते रहे हैं यह कहने से नहीं चूकते कि उन्होंने ही एसटीएफ को जांच सौंपी थी। बाद में उच्च न्यायालय ने एसआईटी गठित कर उसे एसटीएफ की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी। व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच की मांग को दस बहाने ढूंढ़कर खारिज करते रहे शिवराज सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच सीबीआई को सौंपे जाने का श्रेय भी अपने खाते में डालते हुए कहते हैं कि उन्होंने ही देश की शीर्ष अदालत से जांच सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया था। व्यापमं घोटाला आज मध्यप्रदेश ही नहीं, देश और दुनिया के मीडिया में सुर्खियों में छाया हुआ है। बदनाम व्यापमं का नाम बदलने की कोशिश शिवराज सरकार पहले भी करती रही है। इसी वर्ष 12 मई को हुई कैबिनेट की बैठक में व्यापमं का नाम बदलकर ‘मध्यप्रदेश भर्ती एवं प्रवेश परीक्षा मंडल’ (मभप्रपमं) करने का फैसला भी हो चुका था। सरकार के प्रवक्ता डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि व्यापमं का नाम बदलने के लिए विधेयक विधानसभा में लाया जाएगा और अगर जरूरी हुआ तो अध्यादेश भी लाया जा सकता है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि विधानसभा के मानसून सत्र (20 से 31 जुलाई) के दरम्यान ही नाम बदलने संबंधी विधेयक लाने की योजना थी, मगर सत्र के बीच में ही खत्म हो जाने की स्थिति में सरकार अध्यादेश लाने पर विचार कर रही है। इस संबंध में सरकार के प्रवक्ता डॉ. नरोत्तम मिश्रा से जब आईएएनएस ने पूछा तो उन्होंने यह कहते हुए कुछ भी बताने से इनकार कर दिया कि इस मामले को उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता देख रहे हैं। व्यापमं का नाम बदलने को लेकर चल रही कोशिशों पर प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने आईएएनएस से कहा, “व्यापमं घोटाले से मध्यप्रदेश की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल हुई है। इतना बड़ा घोटाला किसी बड़े व्यक्ति के संरक्षण के बगैर संभव नहीं है। सरकार को व्यापमं का नाम बदलने के बजाय अपना चरित्र बदलना चाहिए।” वहीं, जन स्वास्थ्य अभियान की कोर समिति के सदस्य अमूल्य निधि का कहना है कि सरकार को व्यापमं का नाम बदलने के बजाय उसके काम के तरीके को बदलना चाहिए। सिर्फ नाम बदलने से न तो भ्रष्टाचार मिट नहीं जाएगा और न ही प्रभावित लोगों को न्याय नहीं मिल जाएगा। व्यापमं वह संस्था है जो राज्य के चिकित्सा महाविद्यालयों, इंजीनियरिंग महाविद्यालयों और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में दाखिले और सरकारी नौकरियों की श्रेणी तीन व चार की भर्ती परीक्षा आयोजित करता है। व्यापमं वर्ष 1970 में अस्तित्व में आया था। ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने नौ जुलाई को व्यापमं की जांच सीबीआई को सौंपी थी। सीबीआई ने 13 जुलाई को भोपाल पहुंचकर जांच शुरू कर दी थी। सीबीआई इस सिलसिले में अब तक 14 प्राथमिकी दर्ज कर चुकी है। वहीं घोटाले के 19 गवाहों की मौत को जांच के दायरे में लिया है, जिसमें दिल्ली के टी.वी. पत्रकार अक्षय सिंह की मौत भी शामिल है। सीबीआई ने जिन लोगों को आरोपी बनाया है, उनमें भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेताओं के करीबी लोगों के नाम भी हैं। सूत्रों के अनुसार, सीबीआई की जांच से पहले इस मामले की जांच कर रही एसटीएफ ने कुल 55 प्रकरण दर्ज किए गए थे। 21 सौ आरोपियों की गिरफ्तारी की जा चुकी है, वहीं 491 आरोपी अब भी फरार हैं। इस जांच के दौरान अब तक 48 लोगों की मौत हो चुकी है। एसटीएफ इस मामले के 12 सौ आरोपियों के चालान भी पेश कर चुकी है। इस मामले का जुलाई, 2013 में खुलासा होने के बाद जांच का जिम्मा अगस्त, 2013 में एसटीएफ को सौंपा गया था। फिर इस मामले को उच्च न्यायालय ने संज्ञान में लेते हुए पूर्व न्यायाधीश चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल, 2014 में एसआईटी बनाई, जिसकी देखरेख में एसटीएफ जांच कर रही थी। अब मामला सीबीआई के पास है।

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