सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को सौंपी व्यापमं की जांच

नई दिल्ली !   सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले से संबंधित आपराधिक मामलों और इससे संबंधित 40 से अधिक लोगों की मौत के मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी। सीबीआई मामले की जांच सोमवार से शुरू करेगी। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी। इससे पहले महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने न्यायालय को बताया कि उन्हें मध्य प्रदेश सरकार की ओर से मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का निर्देश मिला है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने व्यापमं मामले की जांच को सीबीआई को सौंपने पर न्यायालय से जब कुछ कहना चाहा, तो रोहतगी ने न्यायालय से कहा कि उन्हें मध्य प्रदेश सरकार से यह निर्देश मिला है कि वे न्यायालय से कहें कि मामले की जांच को सीबीआई को सुपुर्द किया जाए।
इसके बाद दिए आदेश में न्यायालय ने कहा, “महान्यायवादी का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार को व्यापमं घोटाले से संबंधित आपराधिक मामलों और इससे जुड़े लोगों की मौत से संबधित मामलों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच के लिए इन्हें सीबीआई को सौंपने पर कोई आपत्ति नहीं है।”
न्यायालय ने कहा, “हम महान्यायवादी के रुख की सराहना करते हैं। उनकी बातों को ध्यान में रखते हुए हम व्यापमं से संबंधित आपराधिक मामलों और इससे संबंधित लोगों की मौत से जुड़े मामलों को सीबीआई को सौंपते हैं। जांच एजेंसी सोमवार से मामले की जांच करेगी।”
जांच को सीबीआई को सौंपते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा जांच को सीबीआई को सौंपने को लेकर की गई सिफारिश पर उच्च न्यायालय द्वारा कोई ध्यान न देने को लेकर उसे लताड़ लगाई।
उच्च न्यायालय ने जिस तरह मामले से किनारा किया उसपर नाखुशी जताते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस पर फैसला कर सकते थे। उन्होंने गेंद को हमारे पाले में फेंक दिया।”
सीबीआई जांच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका के बारे में न्यायालय ने कहा कि वह 24 जुलाई को जांच एजेंसी का पक्ष सुनने के बाद इस पर विचार करेगा।
न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और राज्य के राज्यपाल रामनरेश यादव को नोटिस भी जारी किया, जिसमें वन संरक्षक नियुक्ति घोटाला में राज्यपाल यादव की कथित संलिप्ता को लेकर उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को इस आधार पर निरस्त करने का आदेश दिया गया कि संवैधानिक पद पर आसीन होने के कारण उन्हें इससे छूट प्राप्त है।
सुनवाई शुरू होते ही वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने ग्वालियर के वकीलों की ओर से पेश होते हुए राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ प्राथमिकी को उच्च न्यायालय द्वारा रद्द करने के आदेश पर सवाल उठाया।
सिब्बल ने कहा, “उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय आपराधिक कानूनों पर कोई ध्यान नहीं दिया।”
प्राथमिकी रद्द करने के आदेश पर सवाल उठाते हुए सिब्बल ने कहा, “यह अनुच्छेद 361 की किसी भी प्रकार से व्याख्या नहीं हो सकती।”
उन्होंने कहा कि राज्यपाल के खिलाफ मामले को राज्य सरकार तथा केंद्र दोनों से ही समर्थन था।
सिब्बल ने न्यायालय से कहा, “मध्य प्रदेश के महाधिवक्ता ने न्यायालय से कहा था कि प्राथमिकी में पर्याप्त सामग्री थी, जो यह इशारा करते थे कि मुख्य आरोपी व राज्यपाल अपराध में सहभागी हैं।”
उन्होंने कहा, “यहां तक कि केंद्र ने भी कहा था कि प्राथमिकी अनुच्छेद 361 का उल्लंघन नहीं करता है।”
वहीं, ग्वालियर के वकीलों ने न्यायालय से राज्यपाल यादव को उनके पद से हटाने की मांग की, ताकि फॉरेस्ट गार्ड घोटाले में उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

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