भोपाल । मध्य प्रदेश के प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) परीक्षा पास कराने का ठेका लेने वाला गिरोह परीक्षार्थियों के रोल नंबर बदलवा देता था। इस बात का खुलासा वर्ष 2012 में हुई पीएमटी परीक्षा को लेकर सामने आए दस्तावेजों से हुआ है। इस वर्ष की परीक्षा में सात सौ परीक्षार्थियों के रोल नंबर बदले गए थे। दावा किया जा रहा है कि इनमें से 300 से ज्यादा परीक्षार्थियों का चयन भी हो गया, जिनमें 150 छात्रों ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लिया है। राज्य के सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों की 1,250 सीटों पर दाखिले के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) के जरिए हर वर्ष पीएमटी परीक्षा आयोजित होती है। इनमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों की आठ सौ और निजी मेडिकल कॉलेजों की साढ़े चार सौ सीटें (आधी सीटें) शामिल हैं। वहीं निजी मेडिकल कॉलेजों की शेष सीटों को डीमेट के जरिए भरा जाता है। व्यापमं घोटाले के खिलाफ उच्च न्यायालय इंदौर में अभय चोपड़ा ने सितंबर 2013 में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसके बाद यह मामला उच्च न्यायालय जबलपुर में स्थानांतरित हो गया था। चोपड़ा ने आज बताया, “एसटीएफ की ओर से उच्च न्यायालय में दाखिल किए गए दस्तावेजों से चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है।” चोपड़ा ने बताया कि इन दस्तावेजों से पता चलता है कि वर्ष 2012 में हुई पीएमटी में लगभग 40 हजार छात्र शामिल हुए, जिनमें से सात सौ अभ्यर्थियों के रोल नंबर बदले गए थे। 28 जनवरी 2014 को दाखिल किए गए दस्तावेजों के अनुसार, एसटीएफ की जांच में व्यापमं के अधिकारियों द्वारा सात सौ अभ्यार्थियों का रोल नंबर अनुचित तरीके से बदलने की जानकारी सामने आई है। इसके साथ ही एसटीएफ ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को भी पत्र लिखकर बताया था कि इनमें 150 छात्रों ने सरकारी कॉलेजों में दाखिला भी ले लिया है, जिनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने आईएएनएस से कहा कि एसटीएफ ने भी माना है कि वर्ष 2012 में रोल नंबर बदलवाकर राज्य के सात सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में 150 अभ्यर्थियों ने दाखिला लिया था, मगर शेष में से कितने अभ्यार्थियों ने निजी महाविद्यालयों में दाखिला लिया था, इस बात का अब भी खुलासा नहीं हुआ है। उनका दावा है कि शेष छात्रों में से डेढ़ सौ ने निजी महाविद्यालयों मे दाखिला लिया होगा, इस तरह सात सौ में से तीन सौ से ज्यादा अभ्यार्थियों ने दाखिला पाया होगा। गौरतलब है कि जुलाई 2013 में हुई पीएमटी में इंदौर की अपराध शाखा ने एक ऐसे गिरोह को पकड़ा गया था, जो पीएमटी में फर्जी परीक्षार्थी बैठाकर परीक्षा पास करवाता था। बाद में जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि इस कांड का मास्टरमाइंड डॉ. जगदीश सागर व्यापमं के अफसरों के साथ मिलकर रोल नंबर इस तरह सेट कराता था कि उसकी मर्जी के मुताबिक, ऐसे छात्र एक ही जगह और एक ही कक्ष में बैठें। डॉ. सागर इन परीक्षार्थियों के बीच फर्जी छात्र यानी सॉल्वर भी बैठाता था। इस बात की पुष्टि एसटीएफ द्वारा उच्च न्यायालय में पेश किए गए दस्तावेजों से भी होती है। सर्वोच्च न्यायालय ने नौ जुलाई को व्यापमं की जांच सीबीआई को सौंपी थी। सीबीआई ने बीते सोमवार को भोपाल पहुंचकर जांच शुरू की। सीबीआई अब तक कुल 13 प्राथमिकी दर्ज कर चुकी है और इस लिससिले में हुई 17 मौतों को जांच के दायरे में लिया है, जिसमें टीवी पत्रकार अक्षय सिंह की मौत भी शामिल है। सूत्रों के अनुसार, जांच की कमान नौ जुलाई 2015 को सीबीआई को सौंपे जाने से पहले एसटीएफ ने घोटाले में कुल 55 मामले दर्ज किए थे। 2,100 आरोपियों की गिरफ्तार किया जा चुका है, वहीं 491 आरोपी अब भी फरार हैं। इस जांच के दौरान 48 लोगों की मौत हो चुकी है। एसटीएफ इस मामले के 1,200 आरोपियों के चालान भी पेश कर चुकी है। इस मामले का जुलाई 2013 में खुलासा होने के बाद जांच का जिम्मा अगस्त 2013 एसटीएफ को सौंपा गया था। फिर इस मामले को उच्च न्यायालय ने संज्ञान में लेते हुए पूर्व न्यायाधीश चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल 2014 में एसआईटी बनाई गई, जिसकी देखरेख में एसटीएफ जांच कर रही थी। अब मामला सीबीआई के पास है।

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