भोपाल ! मध्य प्रदेश सरकार लाडली लक्ष्मी योजना में बदलाव करने के बाद पिछले आठ वर्षों में जन्मी बालिकाओं के नाम पर दिए गए राष्ट्रीय बचत पत्रों (एनएससी) को वापस लेने के लिए अभियान चला रही है। इस अभियान ने सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि सरकार अब तक बांटी गई कई हजार करोड़ रुपए के एनएससी वापस लेने के बदले में हितग्राहियों को सिर्फ वचनबद्धता-प्रमाणपत्र दे रही है। राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने वर्ष 2006 में लाडली लक्ष्मी योजना का ऐलान किया और यह योजना एक अप्रैल 2007 से अमल में आई।
महिला बाल विकास विभाग के अधीन चलने वाली इस योजना का मकसद कन्या जन्म को प्रोत्साहित करने के साथ बालिकाओं को शैक्षणिक और आर्थिक तौर पर सक्षम बनाना है। योजना में जन्म के पांच वर्ष तक बालिका को हर वर्ष छह-छह हजार की एनएससी कुल मिलाकर 30 हजार की एनएससी दिए जाने का प्रावधान है। सरकार ने पूर्व में अमल लाई योजना और उसकी शर्तो में बीते दिनों कुछ बदलाव किया है, और उसे नाम दिया है, ई-लाडली लक्ष्मी योजना। बदलाव के बाद सरकार पुराने सभी हितग्राहियों से एनएससी वापस मांग रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री चौहान की ओर से तमाम समाचार पत्रों में एक अपील भी जारी की जा रही है। इस अपील में कहा गया है कि नए हितग्राहियों को अब सरकार की ओर से वचनबद्धता प्रमाणपत्र दिए जाएंगे, इसलिए पुराने हितग्राही एनएससी वापस कर वचनबद्धता प्रमाणपत्र हासिल कर लें। दोनों ही तरह के हितग्राहियों को सरकार की ओर से समान सुविधाएं दी जाएंगी। सरकार की एनएससी वापस लेने की मुहिम ने आमजन के बीच सवाल खड़े कर दिए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला एसोसिएशन (एडवा) की प्रदेश सचिव संध्या शैली ने आईएएनएस से कहा, भाजपा ने लाडली लक्ष्मी योजना का लॉलीपॉप दिखाकर दो बार चुनाव जीत लिया है, वास्तव में भाजपा की जनता से छलावा की मंशा थी। अब वही बात सामने आने लगी है। उन्होंने कहा, सरकार पर एक लाख करोड़ से अधिक का कर्ज है, वेतन, छात्रवृत्ति व पेंशन देने के लिए रकम नहीं है। ऐसे में वह लाडली लक्ष्मी को एनएससी कैसे दे पाएगी, लिहाजा उसने प्रदेश की जनता से छल करने के लिए नया शिगूफा छोड़ा है, वहीं हितग्रााहियों से एनएससी के तौर पर वापस आने वाली रकम को अपनी मनमर्जी से खर्च कर सकेगी, उससे जवाब कौन मांगेगा। सरकार की इस मुहिम को लेकर उठ रहे सवाल पर महिला बाल विकास के अधीन संचालित महिला सशक्तीकरण की आयुक्त कल्पना श्रीवस्तव का कहना है, जो एनएससी दी जाती है, उसके गुम होने, हर वर्ष नवीनीकरण की समस्या रहती है। लिहाजा, योजना में किए गए बदलाव के बाद सरकार की ओर से वचनबद्घता प्रमाणपत्र दिया जा रहा है, हितग्राही की राशि को एक निधि विशेष में जमा किया जा रहा है, जो विभाग के अधीन रहेगी। उन्होंने कहा, सरकार प्रमाणपत्र दे रही है, इस प्रमाणपत्र पर दर्ज संख्या के आधार पर हितग्राही कभी भी और कहीं भी इंटरनेट से ब्योरा देख सकेगी, लिहाजा किसी तरह की शंका नहीं होना चाहिए। वहीं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता-सहायिका एकता यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष विद्या खंगार का कहना है कि सरकार की ओर से दी जाने वाली एनएससी डाक विभाग की होती है, इस पर हितग्राही को भरोसा होता है कि यह एनएससी परिपक्व होगी और उसे राशि मिलेगी, मगर प्रमाणपत्र का वह क्या करेगी, अगर सरकार बदल गई तो उसका क्या होगा, कोई नहीं जानता। कांग्रेस के काल में बालिका समृद्धि योजना शुरू हुई थी, उसका क्या हाल है किसी को पता नहीं। इस योजना में प्रावधान है कि छठी कक्षा में दाखिला लेने पर दो हजार रुपये, नौवीं में चार हजार रुपये, 11वीं में साढ़े सात हजार रुपये दिए जाएंगे। इसके साथ ही 11वीं व 12वीं की पढ़ाई के दौरान दो वर्ष दो सौ रुपये प्रतिमाह देने का प्रावधान है। शर्त है कि बालिका की 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह न हो और वह 12वीं तक स्कूल गई हो, तब उसे 21 वर्ष की आयु में एक लाख रुपये एकमुश्त (एनएससी के नगदीकरण पर) मिलेंगे। मुख्यमंत्री चौहान ने अपनी अपील में बताया है कि इस योजना से अब तक 20 लाख बालिकाएं जुड़ चुकी हैं। इस अपील को आधार बनाकर औसत निकाला जाए तो हर वर्ष लगभग दो से ढाई लाख बालिकाएं इस योजना से जुड़ी हैं।
वर्ष 2007 से 2010 अर्थात तीन वर्ष में जन्मी लगभग साढ़े सात लाख बालिकाओं को पांचों एनएससी (तीस हजार) मिल चुकी होंगी।
इस राशि का योग किया जाए तो वह 2100 करोड़ के लगभग होगी। वहीं शेष साढ़े 12 लाख बालिकाओं को औसत तौर पर दो एनएससी ही दी गई होगी तो वह रकम 1440 करोड़ होगी। इस तरह सभी एनएससी आने पर सरकार द्वारा बनाई गई निधि में 3500 करोड़ से ज्यादा की रकम आ जाएगी।
महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी मानते हैं कि अभी तो सिर्फ एनएससी ही दी गई है, उन्हें अन्य योजना का लाभ नहीं मिला है, क्योंकि वर्ष 2007 में जन्मी बालिका अभी अधिकतम आठ वर्ष की होगी और वह छठी कक्षा में पहुंची नहीं होगी, लिहाजा शिक्षा के लिए दी जाने वाली राशि का वितरण ही शुरू नहीं हुआ है।
सरकार द्वारा योजना में बदलाव कर एनएससी वापस लेने के लिए चलाई जा रही मुहिम से उन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जो घर-घर जाकर एनएससी वापस ले रहे हैं। उनके पास इस बात का कोई तर्कसंगत जवाब नहीं है कि प्रमाणपत्र से उन्हें वाकई में सरकार द्वारा घोषित रकम व अन्य लाभ मिल ही जाएंगे।