रूस पर अमेरिका की अगुवाई में प्रतिबंध लगने का सिलसिला शुरु हो चुका है। ट्रंप प्रशासन रूस पर और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की तैयारियां कर रहा है। ऐसे में भारत ने अमेरिका के सामने साफ तौर पर कह दिया है कि अगर रूस पर लगे प्रतिबंध की वजह से वह रक्षा उपकरण या आयुध नहीं खरीद पाता है तो यह सिर्फ भारत के हितों के लिए ही नहीं बल्कि अमेरिकी हितों के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा। ऐसे में भारत की मंशा है कि रूस पर लगे प्रतिबंधों से उसे अलग रखा जाए। भारत की चिंता इस बात से है कि अभी भी वह अपने तकरीबन 60 फीसद सैन्य सामानों के लिए रूस पर निर्भर है। इसके साथ ही भारत एक ही देश से अधिकांश सैन्य उपकरण खरीदने की अपनी पुरानी नीति को भी तेजी से बदलाव करने जा रहा है।

विदेश मंत्रालय के अहम वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक, ”अमेरिका को भारतीय रूख से पूरी तरह से अवगत कराया गया है। असलियत में भारत की तरफ से अमेरिकी प्रतिनिधियों के सामने तीन पहलू रखे गये हैं। सबसे पहले तो यह बताया गया है कि भारत रूस से सैन्य उपकरणों की खरीद तेजी से कम कर रहा है। भारत एक ही देश पर अपनी रक्षा जरूरतों की निर्भरता खत्म कर रहा है और इसका सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका को हो रहा है।”
आंकड़ों में देखे तो एक दशक पहले भारत अपनी जरुरत का 80 फीसद सैन्य आयुध, उपकरण आदि रूस से खरीदता था आज 60 फीसद के करीब कर रहा है। अमेरिकी सैन्य साजों समान का भारत सबसे बड़े खरीददार के तौर पर उभरा है। पिछले एक दशक में भारत ने तकरीबन 15 अरब डॉलर के रक्षा उपकरण अमेरिका से खरीद चुका है। अमेरिका की तरफ से वर्ष 2016 में भारत को अहम सैन्य साझेदार देश घोषित करने के बाद रक्षा क्षेत्र में सहयोग और तेजी से बढ़ रहा है। अमेरिकी कंपनियों से बेहद आधुनिक युद्धक विमान खरीदने और उन्हें भारत में बनाने को लेकर बातचीत चल रही है। इसके अलावा अमेरिकी सहयोग से युद्धक विमान वाहक जहाज, ड्रोन तकनीक आदि भी खरीदने की वार्ता हो रही है। भारत की तरफ से ये सारी बातें अमेरिका को बताई गई है।

भारत की तरफ से दूसरा पक्ष यह रखा गया है कि अगर वह रूस से सैन्य उपकरण या आयुध नहीं खरीद पाएगा तो उसका असर अमेरिकी हितों पर भी पड़ेगा। क्योंकि अफगानिस्तान, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत व अमेरिका आपसी हितों के लिए कई मोर्चे पर काम कर रहे हैं। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, तीसरा पक्ष यह रखा जा रहा है कि भारत भले ही रूस से हथियार खरीदे लेकिन वह उसका इस्तेमाल अमेरिका हितों के खिलाफ नहीं करने वाला है। दूसरी तरफ अमेरिका से हथियार खरीदने वाले कुछ देश सीधे तौर पर भारत के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब देखना होगा कि भारत के इन तर्को का अमेरिकी प्रशासन या वहां की कांग्रेस पर कुछ असर होता है या नहीं।

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