भोपाल ! रहवासी इलाकों में शराब दुकानें संचालित होने से आम नागरिकों को परेशानियों का उल्लेख करते हुए देश के प्रतिष्ठित विधि विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के विद्यार्थियों ने अपनी रिपोर्ट राज्य मानवाधिकार आयोग को सौंप दी है। रिपोर्ट के अनुसार शराबियों द्वारा किये जाने वाले दुव्र्यवहार से लड़ाई-झगड़े, सडक़ दुर्घटनाएं, यातायात बाधित जैसी परेशानियॉ प्रतिदिन होती रहती है। कभी कभी संपत्ति के नुकसान भी होता हैं। विद्यार्थियों ने ’’ रहवासी क्षेत्रों में शराब दुकानों से प्रभावित जन-जीवन (भोपाल एवं होशंगाबाद शहरों का सर्वेक्षण कर)’’ विषय पर लघु शोध किया है।
अध्ययन के लिए विद्यार्थियों ने भोपाल के अध्योध्या नगर बाईपास, भोपाल रेलवे स्टेशन के पीछे , नेहरू नगर और रत्नागिरी क्षेत्रों को चुना था। इस संबंध में विद्यार्थियों ने स्थानीय पुलिस थाना प्रभारियों से चर्चा की । चर्चा के दौरान संबंधित अधिकारियों ने स्वीकार किया कि, कई तरह के प्रकरण इन शराब की दुकानों के कारण आते हैं, जिनमें विधि अनुरूप कार्यवाही की जाती है।
शोधार्थियों ने पाया, कि नेहरू नगर एरिया में संचालित दुकान के कारण छेड़-छाड़ की घटनाएं अधिक होती है। वहीं रत्नागिरी इलाके में शाराबी महिलाओं और बच्चों को परेशान करते हैं तथा घर में घुस कर उपद्रव भी करने लगते है। यदि इन स्थानों से यह दुकानें अन्यत्र स्थानांतरित की जाये, तो निवासियों को आये दिन की परेशानियों से निजात मिल सकती है। इसी तरह होशंगाबाद शहर के नेशनल हाईवे 69 शांति नगर क्षेत्र के रहवासी भी चाहते है, कि शराब की दुकान कहीं अन्यत्र स्थानांतरित की जाये।
सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया, कि रहवासी क्षेत्रों में शराब की दुकानें संचालित होने से कई रहवासियों को शराब की लत लग जाती है। इससे उनका पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक नुकसान होता है। कई बार वे इस लत के कारण अपने ही घरों में परिजनों से लड़ाई-झगड़े और महिलाओं पर अत्याचार करते हैं। जिसके चलते वातावरण बिगड़ता है। इसका नौनिहालों पर बुरा असर है।
दुकानें हटाये जाने को लेकर कई बार आंदोलन भी किये गये, लेकिन आबकारी विभाग की ओर से कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं की गई। सर्वेक्षण के दौरान 40 फीसदी रहवासियों ने जहां स्पष्ट रूप से जानकारी दी , वहीं 60 फीसदी रहवासी डरे-सहमे दिखायी दिये ।
शिकायत के बाद जिम्मेदार अधिकारियों का व्यवहार : शराब की दुकानें बंद करवाने की शिकायत पर अधिकारियों के व्यवहार
सामाजिक दायित्व शिक्षादान का
उद्योग अपने सामाजिक दायित्वों को इस तरह भी निभा सकते हैं, जिसका सीधा लाभ समाज को मिले। कंपनी नियमों के मुताबिक लाभांश का पांच प्रतिशत हिस्सा उन्हें सामाजिक विकास के कार्यों के लिए देना होता है। इस राशि से जनकल्याण के कार्य कराए जाते हैं। वृक्षारोपण, अस्पतालों, स्कूलों में सुविधाएं बढ़ाना, पीने के पानी के लिए हैण्डपंप लगवाना, सडक़ों, सामुदायिक भवनों का निर्माण तथा इसी तरह के अन्य कार्य अब तक होते रहे हैं। इस बीच एक नई पहल भी सामने आई है। यह पहल ऐसे परिवारों के बच्चों को नामी स्कूलों में पढ़ाने का खर्च उठाने की हैं, जो आर्थिक कठिनाइयों के कारण पढ़ा नहीं पाते। बिलासपुर के तत्कालीन कलेक्टर और सम्प्रति संभाग के आयुक्त सोनमणि बोरा ने बैगा जनजाति के बच्चों के लिए उड़ान कार्यक्रम की शुरूआत की थी। इस कार्यक्रम के जरिए बैगा परिवारों के बच्चों को नामी स्कूलों में पढ़ाई का खर्च वहन करने का बीड़ा प्रशासन ने उठाया था। श्री बोरा की ही पहल पर एक और उड़ान की तैयारी है। कोरबा स्थित एनटीपीसी की बिजली परियोजना क्षेत्र में आने वाले गांवों में विशेष संरक्षित पहाड़ी कोरवा जनजाति निवास करती है। इस जनजाति में शिक्षा का भारी अभाव है। श्री बोरा की पहल पर एनटीपीसी प्रबन्धन इस जनजाति के बच्चों को नामी स्कूलों में पढ़ाने का खर्च उठाने पर सहमत हो गया है। यह खर्च उद्योगों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व स्कीम (सीएसआर) मद से उठाया जाएगा। इसमें ऐसे बच्चों को भी जोड़ा जा सकता है, जो प्रतिभाशाली है, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण आगे की पढ़ाई जारी रख नहीं पाते। पंचायतों से ऐसे बच्चे के प्रस्ताव मंगाकर उनकी मदद की जा सकती है। निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियां राज्य में काम कर रही है। कुछ कंपनियों में प्रतिभा प्रोत्साहन जैसी निधि भी स्थापित की गई है। इस निधि का लाभ ज्यादा से ज्यादा जरुरतमंद प्रतिभाओं तक पहुंचे, ऐसा प्रयास करना चाहिए। यह कंपनी प्रबंधकों की विशेष रुचि से ही संभव हैं। सामाजिक उत्तरदायित्वों के मामले में भी कानून-कायदों के भीतर ही रहकर वे सोचेंगे तो कुछ ऐसे रचनात्मत्क कार्य छूट जाएंगे जो प्रबंधकीय दूरदर्शिता से संभव है। पहाड़ी कोरवा बच्चों के लिए सीएसआर मद से नई उड़ान की पहल सराहनीय है। इससे प्रेरणा लेकर दूसरी कंपनियां भी अपने-अपने क्षेत्र में यह जिम्मेदारी उठा सकती हैं।