लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे कांग्रेस के लिए 2014 से कहीं ज्यादा खराब रहे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ऐतिहासिक जीत कांग्रेस की ऐतिहासिक हार में तब्दील हो गई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पारिवारिक सीट अमेठी भी हाथ से निकल गई जो हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रही है. बीजेपी की फायरब्रांड नेता और स्टार प्रचारक स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष को यहां से हरा दिया.

राहुल गांधी की अप्रत्याशित हार का नतीजा यह निकला की कांग्रेस का विश्वास डगमगा गया. बीजेपी और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने न केवल कांग्रेस को पस्त कर दिया बल्कि सपा-बसपा और रालोद गठबंधन के मंसूबे फेल दिए. 2014 के बाद ऐसा पहली बार था जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पूरे देश में चुनाव लड़ रही थी.
कांग्रेस पार्टी इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर सही ढंग से पलटवार करने नाकाम नजर आई. जब कांग्रेस ने चौकीदार चोर है का नारा दिया तो उसके उलट बीजेपी ने मैं भी चौकीदार कैंपेन को हवा दे दी. बीजेपी के नेता, दिग्गज केंद्रीय मंत्री और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर अपने नाम के आगे चौकीदार लगा लिया. सोशल मीडिया पर लागातार ऐसे वीडियो अपलोड किए जिसमें मैं भी चौकीदार का समर्थन किया गया.

कांग्रेस यहां बड़ी भूल कर बैठी. नकारात्मक कैंपेन को हवा देने के प्रयास में कांग्रेस अपनी सार्थक बातों को लोगों तक पहुंचाने में फेल हो गई. राहुल गांधी ने चुनावी रैलियों में चौकीदार चोर का मुद्दा खूब उठाया. जब सुप्रीम कोर्ट में राफेल मामले में एक निर्णय दिया तो राहुल गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चौकीदार चोर है. मामला आगे बढ़ा. सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट में माफी तक मांगनी पड़ी.

सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की. उन्होंने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से इस संबंध में बात भी कही लेकिन पार्टी ने कहा कि यह मुद्दा कांग्रेस की वर्किंग कमेटी मीटिंग के सामने रखा जाना चाहिए.

इस मामले पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक एक सप्ताह के भीतर बुलाई जा सकती है. इस मीटिंग में इस बात पर भी बहस की जा सकती है किस तरह से 2014 में और 2019 में कांग्रेस असफल साबित हुई. लेकिन कांग्रेस का इतिहास रहा है कि यहां मंथन शीर्ष नेतृत्व पर नहीं किया जाता.

प्रधानमंत्री मोदी का कांग्रेस पर लगातार वंशवाद को लेकर टिप्पणी करना, अपने आप में कांग्रेस को असहज करने वाली रही है. कांग्रेस बीजेपी के निशाने पर अक्सर रहती है. कांग्रेस की हार पर पार्टी के वरिष्ठ नेता और एक समय में महासचिव रहे जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार से वे आश्चर्यचकित नहीं है. हालांकि इससे ज्यादा उन्होंने कहने से कुछ मना कर दिया.

राहुल गांधी से इतर रणनीति पर चलने के लिए मशहूर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी पार्टी के नेताओं से कुछ खुश नजर नहीं आए. उन्होंने कहा कि सिद्धू का पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा को गले लगाना किसी भी हिन्दुस्तानी को अच्छा नहीं लगा, यहां तक कि एक पूर्व सैनिक होने के नाते मुझे भी उनकी यह हरकत ठीक नहीं लगी. कैप्टन ने कहा कि कोई भारतीय ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए थी.

राहुल गांधी के लिए मुश्किलें यहीं नहीं खत्म होने वाली हैं. अब आशंका के बादल कर्नाटक में भी छा रहे हैं जहां मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी नतीजों से बौखलाए हैं. उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को मौजूदा परिस्थिति पर चर्चा के लिए भी बुलाया है. मध्य प्रदेश सरकार का अधर में जाना भी राहुल गांधी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अपने छवि को बदलकर एक बार फिर से खड़े होने की. एक नेता के नेतृत्व की असली पहचान तभी होती है जब वह विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को स्थापित कर सकने में सक्षम हो. राहुल गांधी को अब अपनी छवि से इतर एक छवि बनाने की सबसे बड़ी चुनौती है जिसमें वे विजेता बनकर उभरें.

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