नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों से जुड़े गैरकानूनी तरीके से हथियार रखने के एक मामले में फिल्मस्टार संजय दत्त को दोषी करार देते हुए उनकी सज़ा को घटाकर पांच साल कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि संजय दत्त के अपराध की प्रकृति और हालात इतने गंभीर हैं कि उन्हें नहीं छोड़ा जा सकता। संजय दत्त फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, लेकिन अब शीर्ष अदालत द्वारा सज़ा सुनाए जाने के बाद उन्हें चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करना होगा, और फिर साढ़े तीन साल जेल में बिताने होंगे।
इसके अलावा कोर्ट ने याकूब अब्दुल रज़्ज़ाक मेमन को मुंबई सीरियल ब्लास्ट का मास्टरमाइंड बताते हुए उसकी फांसी की सज़ा को बरकरार रखा है, जबकि टाडा कोर्ट द्वारा फांसी की सज़ा पाए शेष 10 अभियुक्तों की सज़ा को घटाकर उम्रकैद कर दिया गया है। इनके अलावा कोर्ट ने उम्रकैद पाए 22 में से दो लोगों को बरी कर दिया है, जबकि शेष 20 की सज़ा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मुंबई में हुए सीरियल धमाकों की साज़िश और प्रबंधन अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने किया।
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों से जुड़े मामलों पर फैसला सुनाने के दौरान आरोपियों के इकबालिया बयानों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि मुंबई में हुए बम धमाकों की साज़िश में पाकिस्तान का हाथ था। कोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया। कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने आतंकवादियों को ट्रेनिंग और पनाह दी। इसके अलावा कोर्ट ने भारतीय पुलिस और कस्टम विभाग को भी लताड़ लगाई, और कहा कि यदि इन दोनों विभागों ने हथियारों की तस्करी पर सही तरीके से काम करके रोक लगाई होती तो यह वारदात (मुंबई में हुए सीरियल बम धमाके) नहीं होती।
दरअसल, 12 मार्च, 1993 को मुंबई में एक के बाद एक कुल 12 बम धमाके हुए थे, जिनमें 257 लोगों की मौत हुई थी और 713 लोग घायल हुए थे। इन धमाकों में 27 करोड़ रुपये की संपत्ति को नुक़सान पहुंचा था। इसके बाद टाडा कोर्ट ने अक्टूबर, 2006 में बम विस्फोट शृंखला से जुड़े मामलों में याकूब मेमन समेत 11 लोगों को फांसी की सज़ा और 22 को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी। इस मामले के बाकी आरोपियों को तीन से 10 साल तक की सज़ा सुनाई गई थी।
बाद में, नवंबर, 2006 में मुंबई की टाडा अदालत ने संजय दत्त को टाडा कानून के तहत आतंकवाद की आपराधिक साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप से बरी करते हुए गैरकानूनी तरीके से नौ एमएम की पिस्तौल और एके-56 राइफल रखने के जुर्म में शस्त्र कानून के तहत छह साल की कैद की सजा सुनाई थी, और वह 18 महीने जेल में गुजार चुके हैं। फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं, लेकिन अब शीर्ष अदालत द्वारा पांच साल की सज़ा सुनाए जाने के बाद उन्हें चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करना होगा, और फिर साढ़े तीन साल जेल में बिताने होंगे।
शीर्ष अदालत ने इन तमाम अपीलों पर 1 नवंबर, 2011 से अगस्त, 2012 के दौरान 10 महीने तक सुनवाई की थी। इन अपीलों पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने इस मामले के भारी-भरकम दस्तावेजों और वकीलों की लिखित दलीलों के मद्देनजर पहली बार लैपटॉप का इस्तेमाल किया था।
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