सोनागिर-: इत्र मित्र चरित्र की जिंदगी में बहुत आवश्यकता है इत्र वस्त्रों में सुगंध पैदा करता है मित्र जीवन में सुगंध पैदा करता है और चरित्र जगत पूज्य बना देता है! इत्र की सुगंध कुछ घंटों में समाप्त हो जाती है मगर मित्र के चरित्र की सौगंध जीवन भर रहती है। मित्रता कृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए कृष्ण के राजा बन जाने पर भी सुदामा के प्रति जो बचपन में भाव था वह राजा बनने के बाद भी अटूट रही। मित्र वह नहीं होता जिस से मदद मांगने जाना पड़ता है। मित्र वह होता है जो बुरे वक्त में बिन मांगे ही मदद करने के लिए उपस्थित हो जाए। सुदामा ने नारायण श्री कृष्ण से कुछ मांगा नहीं था मगर सुदामा के घर पहुंचने के पहले कृष्ण ने कुटिया को महल का रूप दे दिया था। यह विचार क्रांतिवीर मुनि श्री प्रतीक सागर जी महाराज ने आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!
मुनि श्री ने आगे कहा कि जो तुम्हारे मुख पर प्रशंसा करता है और पीठ पीछे आलोचना करता है। वह तुम्हारा कभी हित चिंतक नहीं हो सकता है। मुख पर प्रशंसा करने वाला चापलूस होता है और तुम्हारे पीठ पीछे लोगों के सामने प्रशंसा करने वाला तुम्हारा सच्चा मित्र और हित चिंतक हो सकता है ।चापलूस दोस्तों से तो अच्छा है बिना दोस्त रहना । ना सितारों की जरूरत है ना बहारों की जरूरत है चरित्रवान एक दोस्त मिल जाए तो फिर क्या जरूरत है हजारों की।
*वनस्पत पुस्तक को अपना मित्र बना लो* मुनि श्री ने आगे कहा कि दुनिया को अपना मित्र बनाने की वनस्पत पुस्तक को अपना मित्र बना लो वह ऐसा मित्र है जो कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगा। मित्र ऐसा चाहिए जो ढाल सरिका होय दुख में तो आगे चले सुख पीछे होए। *मी* = जीवन को मिठास से भर दे *त्र* = सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चरित्र के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे। वही तुम्हारा सच्चा मित्र है।
*आदमी दुनिया की खबर तो रखता है मगर स्वयं की खबर नहीं है*
मुनि श्री ने आगे कहा कि भौतिकता की चकाचौंध में आदमी दुनिया की खबर तो रखता है मगर स्वयं की खबर नहीं है इसीलिए हिंदू परंपरा में पैदा होने वाला 33 करोड़ देवी-देवताओं पर विश्वास करता है ।जैन परंपरा में पैदा होने वाला 24 तीर्थंकरों पर विश्वास करता है। मगर स्वयं के अंदर जो परमात्मा बैठा है उसके ऊपर उसे विश्वास नहीं है जिसे स्वयं के ऊपर विश्वास नहीं वह दुनिया के ऊपर भी विश्वास नहीं कर सकता है। बुझा हुआ दीपक कभी बुझे हुए दीपक को नहीं चला सकता है। मगर जलता हुआ एक दीपक हजारों बुझे दियों को प्रज्वलित कर सकता है। स्वयं पर विश्वास करने वाला कभी अपनी जिंदगी के साथ मजाक नहीं करता है। दुनिया के साथ अगर मजाक करोगे तो माफ कर दिए जाओगे। मगर स्वयं के साथ अगर मजाक करोगे तो दुनिया का कोई भगवान भी तुम्हें माफ नहीं कर सकता है।
मुनि श्री ने कहा कि भारत की धरती स्वर्ग की भूमि से भी सुंदर है इस भूमि पर हीरे मोती माणिक मूंगा धान्य वह सब कुछ है जो एक जीवन जीने के लिए आवश्यकता है। सबसे बड़ी चीज तो यहां अध्यात्म है जो मन को शांति और प्रसन्नता देता है ।धन से बिस्तर खरीदा जा सकता है नींद नहीं, धन से भोजन खरीदा जा सकता है ,मगर भूख नहीं, धन से मंदिर बनाया जा सकता है विशाल मूर्ति विराजमान की जा सकती है, मगर आत्मिक शांति और आनंद नहीं ।आत्मिक शांति और आनंद तो भारत देश की संस्कृति को जीने से मिलता है।
*मुनिश्री के प्रवचन प्रतिदिन प्रवचन होंगे*
चातुर्मास समिति के प्रचार संयोजक सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि मुनिश्री के प्रतिदिन सोमवार से शनिवार तक शाम 7:00 बजे से 7:30 बजे तक ओर रविवार को दोपहर 3:30 से 4:30 तक विशेष प्रवचन होंगे। यह आयोजन मुनि श्री का प्रवास स्थल सोनागिर सिद्ध क्षेत्रफल स्थित अमोल वाली धर्मशाला के आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह में चलेंगे!