भोपाल ! दुराचार की शिकार नाबालिग पीडि़ता के परिवार वालों को घटना की जानकारी तब मिली, जब पीडि़ता को छह माह का गर्भ ठहर चुका था। डॉक्टरों ने गर्भपात करने से मना कर दिया। लोकलाज के चलते एक रिश्तेदार ने आगे बढ़कर कहा, कि हम शिशु को गोद ले लेंगे। अब प्रसव होने तक गर्भवती पीडि़ता सरकारी संरक्षण में है। परिवारवालों का कहना है, कि जब वे घटना की जानकारी संबंधित को दी, तो पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार कर दिया। परिवारवाले पीडि़ता को स्वयं सेवी संस्था में कौंसिलिंग के लिए लेकर आये। जहां कौंसिलिंग के साथ-साथ उसे कानूनी मदद भी मिली। काफी प्रयास के बाद प्राथमिकी दर्ज हुई। अब दुराचारी जेल में है।
प्रदेश की यह कोई एकल घटना नहीं है। मध्यप्रदेश में लगातार नाबालिग बालिकाओं के साथ इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। भारत में वाइलेंस अगेन्ट्स वुमेन सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2007 में जहां इसकी संख्या 1041 थीं, वहीं वर्ष 2013 में यह बढ़कर 2112 गई है। जबकि वर्ष 2012 में यह संख्या 1632, वर्ष 2011 में 1462, 2010 में 1182 और वर्ष 2009 में 1071 थी। नाबालिगों के साथ दुराचार सबसे कम वर्ष 2008 में केवल 892 हुई।
पिछले दिनों जबलपुर में एक साल की मासूम बच्ची और छिंदवाड़ा में एक नि:शक्त नाबालिग के साथ दुराचार की घटना ने प्रदेश को शर्मसार किया है। ग्राम देवरीखुर्द, विकास खण्ड पनागर, जबलपुर में इसी साल मई में बच्ची के साथ आरोपी विष्णु केवट ने अपहरण कर दुराचार किया गया था। पीडि़ता अपनी मां के साथ सकुनिया बाई के घर विवाह में मण्डप की रस्म में नाईन का काम करने के लिए गई थी। जहां मागरमाटी का कार्यक्रम होना था। पीडि़ता को वहां नींद आ गई, तो उसकी मां ने उसे एक किनारे सुला दिया और खुद कार्यक्रम में लग गई। कार्यक्रम खत्म होने के बाद मां जब बच्ची को लेने गई, तब बच्ची वहां से गायब थी। तभी सकुनिया बाई के दामाद ने बताया, कि मेरा भाई बच्ची को उठाकर शासकीय स्कूल की तरफ ले गया है। स्कूल में बच्ची रोती बिलखती खून से लथपथ मिली। बच्ची की हालत देखकर परिजनों को समझ में आ गया कि बच्ची के साथ दुराचार हुआ है। गांव वालों ने आरोपी विष्णु केवट को पकड़कर लात-घूंसों से उसकी पिटाई की। बच्ची की मां-पिता ने पनागर थाने पहुंचकर नामजद एफआईआर दर्ज करवाई। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। इधर, बच्ची को उपचार के लिए एल्गिन अस्पताल भेजा गया। लेकिन अस्पताल में उसे प्राथमिक उपचार बाद वापस भेज दिया गया। बच्ची की हालत बिगड़ते देख माता-पिता व कुछ गांव वाले अस्पताल पहुंचे और दबाव डलवाकर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां आज भी बच्ची का इलाज चल रहा है।
महिला अधिकार सन्दर्भ केन्द्र की राज्य समन्वयक शिवानी सैनी ने इस संबंध में बताया, कि लैंगिक अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम केे बाद भी मुख्यालय से दूर-दराज वाले इलाकों में पुलिस का रवैया पीडि़त परिवारों के साथ अच्छा नहीं होता। बल्कि कई मामलों में यह देखा जाता है, कि पुलिस मध्यस्थता की भूमिका निभाते हैं। नाबालिगों से दुराचार के मामले में भोपाल का अशोका गार्डन इलाका सबसे संवेदनशील है।
संवेदनशील हों सरकारी वकील
ऐसे मामलों में 15-20 गवाहों के साथ-साथ पीडि़त से अदालत में जिरह होती है। वकील अगर संवदेनशील न हों, तो वे नाबालिग या अशिक्षित लोगों से इस तरह सवाल-जवाब करते हैं, कि आरोपी बरी हो जाता है। साथ ही जेल में आरोपी की शिनाख्त कम्बल ओढ़ाकर की जाती है। इससे भी नाबालिग बच्चिया डर जाती हैं और आरोपी की पहचान नहीं कर पातीं। इसलिए पीडि़ता की कौंसिलिंग बहुत जरूरी है और यह पेशी के दिन हो, तो और भी बेहतर। अदालत परिसर में ही एक कमरा कौंसलर के लिए भी आवंटित होना चाहिए।
मोहसीन अली खान
कानूनी सलाहकार, महिला अधिकार
घटना छिपायें नहीं
इस तरह की घटनाएं किसी के लिए तकलीफ देने वाली होती है, फिर भी परिवारवालों को रिपोर्ट तो करनी ही चाहिए। घटना बतायेंगे नहीं, तो समाधान नहीं निकलेगा। घटना के बाद पीडि़ता स्वयं हीन भावना से ग्रसित न हों। क्योंकि ऐसे व्यक्ति मानसिक रोगी या शातिर समझे जाते हैं। इंटरनेट और मोबाईल के युग घटनाओं को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं। घर और स्कूल में बच्चियों को ऐसे घटनाओं से बचने के उपाय निरंतर बताने के साथ-साथ उसे मानसिक और शारीरिक रूप से साहसी बनायें।

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