भगवान को भगवान मानना बड़ी बात नहीं है। भगवान को प्रीतम मानना बड़ी बात है। भगवान को केवल मूर्ति मानकर उसकी पूजा करने से कुछ मिलने वाला नहीं है। प्रीतम बनकर प्रेम करो, प्रेम से पुकारो तो भगवान दौड़े चले आएंगे। यह बात बरासो जैन मंदिर पर पंचकल्याणक के महोत्सव के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम गणाचार्य विराग सागर महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि बृज में माधुर्य रस भक्ति प्रधान है। संयोग, वियोग, उत्तम योग, अधम योग, तटस्थ रहना, शत्रु, मित्र, जन्म, मृत्यु, संपत्ति, विपत्ति, कर्म और काल आदि सब जगत के जंजाल है। इसलिए मनुष्य को जीवन में कुछ सत्कर्म कर लेना चाहिए, ताकि मृत्यु के बाद आपकी आत्मा की शांति के लिए किसी और को ईश्वर से प्रार्थना नहीं करनी पड़े।
आचार्य श्री ने कहा कि जन्म और मृत्यु जीवन के दो सत्य हैं। हर मनुष्य माया के बंधन में बंधा होता है। श्रवण से मनुष्य को जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने कहा जीवन में बुरा समय आने पर तो भगवान को सभी याद करते हैं, लेकिन उसके बाद भूल जाते हैं। मनुष्य यदि अच्छे समय में भगवान के नाम का स्मरण कर ले तो उस पर बुरा समय आएगा ही नहीं। जीवन में परेशानी आती है तो लोग सत्य के मार्ग को छोड़ देते हैं। भागवत के सुनने से मनुष्य जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है ।
आचार्य श्री ने कहा कि मानव के मन में संदेह नहीं होना चाहिए। जिसके मन में संदेह रहेगा। वह भक्ति मार्ग पर नहीं बढ़ पाएगा। अपनी देह से संदेह हटाओ और भक्ति मार्ग पर बढ़ते जाओ। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार ईश्वर और पूर्वज मान्यता देने पर कृपा करते हैं। मानव का ध्येय एवं लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति का होना चाहिए। धन प्राप्ति का नहीं। धन महज आवश्यकता की पूर्ति करता है और मोक्ष मनुष्य का अगला जन्म सुधार देता है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से भारत देश का नाम विख्यात है। जो भिन्ना-भिन्ना धर्मा लंबियों से युक्त होने पर भी अहिंसा, दया, सत्य आदि जैन धर्म के सिद्धांत केा समग्र विश्व धारण करना चाहता है क्योंकि भारत की भूमि पर नैतिकता, धार्मिकता, वात्सल्य, सुसंस्कार, एकता, भाईचारा आदि अनेक गुण देने वाले, त्याग तपस्या करने वाले, दिगम्बर मुनि संत इस धरती पर धर्म की प्रभावना करते है।