नई दिल्ली/भोपाल ! केंद्र सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण विधेयक को हर हाल में पारित कराने के लिए चल रही कोशिशों के बीच सामाजिक संगठन लामबंद होने लगे हैं, और वे सरकार के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर में उतरकर ऐसा आंदोलन करना चाहते हैं, जिससे सरकार को अपनी गलती का अहसास हो जाए।
फिलहाल आंदोलन की तारीख तय नहीं हुई है। केंद्र सरकार वर्ष 2013 में बने भूमि अधिग्रहण विधेयक को बदलकर नया कानून लाना चाहती है, इसके लिए वह दो बार अध्यादेश ला चुकी है, अब वह नए विधेयक को पारित कराने की बात पर अड़ी हुई है। देश के विभिन्न स्थानों से उठ रहे विरोध के स्वर पर सरकार लगातार सवाल उठा रही है। इतना ही नहीं सरकार की ओर से प्रचारित किया जा रहा है कि जो कानून का विरोध कर रहे हैं वे किसान विरोधी हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एकता परिषद के संस्थापक गांधीवादी पी. वी. राजगोपाल ने राज्य सरकार की जमीन संबंधी नीतियों के खिलाफ चार दिवसीय उपवास और धरना दिया। इस धरना को समर्थन देने विभिन्न सामाजिक आंदोलनों से जुड़े लोग पहुंचे। राजगोपाल के साथ जलपुरुष राजेंद्र सिंह, भारतीय किसान संघ के शिवकुमार शर्मा, जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह की हुई बैठक में आगामी आंदोलन की रणनीति पर विचार-विमर्श किया गया।
इस बैठक में सभी का एक ही मत था कि सरकार लगातार यह प्रचारित कर रही है कि नया कानून किसान हित में है, मगर हकीकत किसी को नहीं बताई जा रही है, क्योंकि यह गरीब और किसान से जमीन छीनने का हथियार बनने वाला है। सरकार कहती है कि किसानों को पर्याप्त मुआवजा मिलेगा, चार गुना दिया जाएगा, मगर चार गुना कितना होगा यह किसी को नहीं पता। राजेंद्र सिंह ने बैठक में कहा कि सरकार संचार व प्रचार तंत्र का उपयोग का आमजन के बीच यह संदेश देने में जुटी है कि नया कानून किसान हित में है। साथ ही इस कानून के खिलाफ आवाज उठाने वालों को किसान विरोधी प्रचारित किया जा रहा है, ऐसे में जरूरी हो गया है कि जन-जन तक यह बात पहुंचाई जाए कि सरकार उद्योगपतियों के लिए यह कानून ला रही है, क्योंकि कानून की सच्चाई यही है। राजगोपाल ने कहा कि हमें एकजुट होकर अपनी पहचान को किनारे रखकर आगे आना होगा। इसके लिए दिल्ली में सभी लोग जुटें और ऐसा आंदोलन करें जो सरकार को इस बात का अहसास करा दें कि उसने इस कानून के जरिए अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है। वहीं कानून की खामियों को जनता से अवगत कराने में पीछे नहीं रहे। सामाजिक आंदोलनों से जुड़े लोगों ने पिछले दिनों वर्धा में एक बैठक कर अन्ना हजारे की अगुवाई में पदयात्रा निकालने की कोशिश की थी मगर वे असफल रहे थे, अन्ना पदयात्रा निकालने को राजी नहीं हुए। अब सामाजिक आंदोलन से जुड़े लोग ऐसा कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहते जिससे वे अपने रास्ते पर आगे न बढ़ सकें, इसीलिए सब मिलकर इस बात पर मंथन कर रहे है कि दिल्ली में प्रस्तावित आंदोलन का रूप क्या हो और किस तारीख को दिल्ली पहुंचा जाए।
भूमि विधेयक पर फंसी सरकार
नई दिल्ली। माकर््सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि उनकी पार्टी मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी लड़ाई संसद के भीतर जारी रखेगी और कोई ऐसा विधेयक पारित नहीं होने देगी जो जनता के हितों के खिलाफ हो । येचुरी ने आज यहां पत्रकारों से कहा कि मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले में बुरी तरह फंस चुकी हैं और उम्मीद है कि वह अब इस विधेयक को संसद में पारित नहीं करा पाएगी । उन्होंने कहा कि अब लोकसभा अगले सप्ताह तक ही है और सरकार अभी तक भूमि अधिग्रहण विधेयक सदन में पेश कर पायी है । राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत को देखते हुए अब कम उम्मीद है कि वह इस विधेयक को पारित कराने का साहस जुटा पाएगी । उन्होंने कहा कि राज्यसभा में प्रस्तावित रीयल इस्टेट विधेयक भी जनता के हितों के अनुरूप नहीं है और वह भी अब प्रवर समिति के पास भेजा जाएगा।
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी ऐसे विधेयक को पारित नहीं होने देगी जो जन विरोधी है । उन्होंने आरोप लगाया कि लोकसभा में मोदी सरकार कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में लिए गए फैसलों से अलग कामकाज अचानक सदन में ले आती है जो लोकतांत्रिक परम्परा के विरूद्ध है । उन्होंने कहा कि देश के मजदूरों तथा किसानों का विश्वास मोदी सरकार से उठता जा रहा है और भाजपा का मजदूर संघ भी अब सरकार के खिलाफ है ।
विधेयक को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तीखी बहस
लोकसभा की अगले सप्ताह की कार्यसूची में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को शामिल किये जाने को लेकर आज सत्ता पक्ष और विपक्ष में करीब बीस मिनट तक तीखी बहस होती रही और अंतत: अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को अपनी व्यवस्था देनी पड़ी। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामदलों और बीजू जनता दल (बीजद) के सदस्यों ने सरकार के इस रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि यदि सरकार की नजर में कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की कोई अहमियत नहीं है तो उसे भंग कर देना चाहिए। सदन में विपक्ष का हंगामा उस वक्त शुरू हुआ, जब संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव प्रताप रुडी ने पांच मई से शुरू होने वाले सप्ताह के लिए सदन की कार्यसूची की जानकारी दी और उसमें भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक, किशोर अपराध न्याय और वाणिज्यिक अदालतों से संबंधित विधेयकों का जिक्र किया।
सदन में कांग्रेस के सचेतक ज्योतिरादित्य ङ्क्षसधिया ने बीएसी की चर्चा में शामिल नहीं किए गए विधेयकों को कार्यसूची में शामिल किये जाने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई। उनका साथ वामदलों, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल और बीजद के सदस्यों ने भी दिया। रुडी ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि कल हुई बीएसी की बैठक में जिन विधेयकों को चर्चा के लिए मंजूरी दी गई है, उनका जिक्र कार्यसूची के क्रम संख्या नौ(ए) पर अलग से किया जा चुका है, लेकिन क्रम संख्या 14 पर जिसका जिक्र किया जा रहा है वे प्रस्तावित विधेयक हैं, जिन पर बीएसी की अगली बैठक में चर्चा की जाएगी।
उनकी बात से विपक्षी सदस्य संतुष्ट नजर नहीं आए। तृणमूल के प्रो सौगत राय, बीजद के तथागत सतपति और माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद सलीम ने भी सरकार के इस रवैये को अनुचित ठहराया। अंतत: वित्त मंत्री अरुण जेटली को हस्तक्षेप करना पड़ा और उन्होंने कहा कि दोनों क्रम संख्या पर अंकित मामले अलग-अलग हैं और दोनों को एक साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। बाद में महाजन ने व्यवस्था दी कि ऐसा पहले से होता आ रहा है और यह कोई नई परिपाटी नहीं है। उन्होंने सदस्यों को आश्वस्त किया कि वह कोई गलत काम नहीं होने देंगी। उसके बाद ही सदन में कामकाज सुचारू हो सका।