भोपाल ! राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष शांता सिन्हा ने बुधवार को कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) के लागू होने के तीन वर्ष बाद भी देश में इसके क्रियान्वयन की स्थिति संतोषजनक नहीं है।
सिन्हा ने कहा, “यदि देश में गैर बराबरी की खाई को पाटना है तो यह जरूरी है कि प्रत्येक बच्चे को शिक्षा से जोड़ा जाए। यदि बच्चों को उनके अधिकार मिले, शिक्षा मिली तो समझिए कि देश को दूसरी आजादी मिल जाएगी।”
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में टीटीटीआई सभागार में आरटीई के संबंध में आयोजित राज्य स्तरीय सम्मलेन में सिन्हा ने कहा कि मप्र को इस दिशा में अभी काफी लंबा सफर तय करना है ।
इससे पहले सम्मेलन में उपस्थित प्रख्यात शिक्षाविद एवं केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद, दिल्ली के सदस्य विनोद रैना ने कहा कि कानून के क्रियान्वयन में आ रही कमियों के पीछे केंद्र व राज्य सरकारों की मानसिकता है।
उन्होंने कहा, “तीन वर्ष पूरे हो जाने के बाद भी आरटीई के लगातार उल्लंघन के साथ आज भी सरकारें इस महत्वपूर्ण कानून को अधिकार के रूप में नहीं बल्कि एक सेवा के रूप में देखती हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि केंद्र और राज्य के बीच में एक बड़ा विवाद बजट आवंटन को लेकर भी है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 के बाद से अपने हिस्से का 34,000 करोड़ रुपया नहीं दिया है। रैना ने पंचायत से लेकर ब्लॉक, जिला व राज्य स्तरीय मासिक संवाद पर जोर दिया।
राज्य सरकार की तरफ से सम्मेलन में हिस्सा लेने आए आरटीई के राज्य प्रभारी रमाकांत तिवारी ने कहा कि प्रदेश में तकरीबन 80,000 शिक्षकों की कमी है, 90,000 स्कूलों में अभी भी चारदिवारी नहीं है, 10,000 स्कूलों में पेयजल की सुविधा तक उपलब्ध नहीं है, पर सरकार द्वारा इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। तिवारी ने यह भी कहा कि सरकार ने नामांकन का लक्ष्य 99 प्रतिशत तक हासिल कर लिया है, लेकिन इसे लेकर सम्मेलन में मौजूद अन्य लोगों ने सवाल खड़े किए।
सम्मलेन में सात अलग-अलग संस्थाओं एमपीएलएलएसएम, बीजीवीएस, बचपन, विकास संवाद, अरण्य, मुस्कान, चाइल्ड राइट्स ओब्जर्वेटरी, क्राई ने अपने-अपने अध्ययनों के निष्कर्ष रखे, जिससे यह सामने आया कि नामांकन में बहुत अंतर है। इसके अलावा 61 प्रतिशत शालाओं में दाखिले के लिए दस्तावेजों की मांग की जा रही है। मध्यान्ह भोजन में जाति आधारित भेदभाव, अधोसंरचना की खराब स्थिति, स्कूलों में शौचालय न होना, शिक्षकों की अनुपलब्धता, बच्चों को शारीरिक दंड दिए जाने जैसी समस्याएं भी उठाई गईं।