पिछले कुछ समय से भारतीय सेना ने कई आंतकियों को मार गिराया इसके बावजूद भी सेना हर साल अपने 1600 जवान खो रही है। सबसे ज्यादा जवानों ने सड़क दुर्घटना और आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाई। आंकड़ों के मुताबिक हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 350 जवान, नौसैनिक और एयरमैन अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं जबकि लगभग 120 जवान आत्महत्या कर लेते हैं। इसके अलावा ट्रेनिंग के दौरान और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी जवानों की जान चली जाती है।

सेना की बढ़ी चिंता
आंकड़ों के मुताबिक आर्मी, नेवी और इंडियन एयर फोर्स ने 2014 से अबतक 6,500 कर्मियों को खोया है। वहीं साल 2016 में बॉर्डर पर होने वाली गोलाबारी और आतंकवाद निरोधक कार्रवाई में 112 जवान शहीद हुए हैं जबकि 1,480 जवान फिजिकल कैजुअल्टी के शिकार हुए हैं। इस साल अभी तक युद्ध की कार्रवाई में केवल 80 जवान ही शहीद हुए हैं लेकिन फिजिकल कैजुअल्टी में 1,060 जवान अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। जवानों की इस तरह होती मौत सेना के लिए एक बड़ा चिंता का विषय बन गया है।

मानसिक तौर पर परेशान जवान करते हैं सुसाइड
सीनियर अधिकारियों के अनुसार जवान मानसिक तौर पर परेशान रहते हैं जिसकी वजह से वे सुसाइड जैसा कदम उठाते हैं, इसको रोकने के लिए तरह-तरह के कई प्रयास किए जाने का दावा किया जाता रहा है, लेकिन अबतक कोई ठोस कामयाबी मिलती नहीं दिख रही। नौकरी के दबाव में होने वाली मौतें जैसे आत्महत्या या साथी/सीनियर अधिकारी की हत्या जैसे कारणों से जवानों की होने वाली मौत का आंकड़ा भी काफी बड़ा है। सेना के जवान नौकरी में मिलने वाले मानसिक दबावों के अलावा परिवारिक समस्याओं, प्रॉपर्टी के विवाद, वित्तीय समस्याओं और वैवाहिक समस्याओं के कारण भी आत्महत्या कर रहे हैं।

सेना उठा रही है सुधार के कदम
रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों में चलाए जा रहे आतंकवाद निरोधी अभियानों में लंबे समय तक शामिल रहने के कारण भी जवान भारी दबाव में रहते हैं। इसके अलावा जवानों को काफी कम सैलरी, छुट्टियां और आधारभूत सुविधाएं दी जा रही हैं। हालांकि सेना ने इस समस्या से निपटने के लिए जवानों के लिए मेंटल काउंसलिंग और उनकी रहने-खाने की व्यवस्था में सुधार के कदम उठाए हैं। साथ ही, जवानों को परिवार साथ रखने, आसानी से छुट्टियां देने और तुरंत शिकायत निवारण की व्यवस्था जैसी सुविधाओं में भी सुधार लाया जा रहा है।

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