सोनागिर। धर्म में व्यक्ति विशेष की नहीं, गुणों की पूजा की गई है। व्यक्ति विशेष की पूजा करने वाला धार्मिक नहीं हो सकता है। जब तक व्यक्ति अपने से बड़े और गुणों को देखकर प्रेम और वात्सल्य नहीं करेगा, तब तक वह समाज और परिवार विकास नहीं कर सकता है। व्यक्ति जितनी आकांक्षा रखता है, उतना ही दूसरों के अवगुणों को ही देखता हैं। जबकि व्यक्ति को हमेशा अपने विकास के लिए दूसरो के गुणों को देखना चाहिए। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज शनिवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सभागृह में धर्मसभा में संबोधित करते हुए कही।
मुनिश्री ने कहा कि मानव जीवन को चलाने के लिए धर्म और धन दोनों की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति दिन-रात धन कमाने की सोचता रहता है लेकिन धर्म करने के लिए कुछ ही समय निकाल पाता है। मानवता को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है। आज पारिवारिक बिखराव की वजह आपसी सद्भावना का अभाव है। जो व्यक्ति के जीवन में सबसे आवश्यक है।
मुनिश्री ने कहा की दोस्ती मैं अमीर गरीब का भेद नहीं देखना चाहिए। जिस तरह तीन खंड के अधिपति नारायण श्री कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा के प्रति जो सद्भावना दिखाई थी वैसी सद्भावना की जरूरत सभी के जीवन में जरूरी है। मुनि श्री ने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर भगवान बनने, मोक्ष जाने के गुण मौजूद हैं। ना जाने पिछले कितने जीवन में यह आत्मा जन्म लेकर अमीर गरीब, जीव जंतु, बनती रही है। स्वर्ग-नर्क, निगोद में जाती रही है। जन्म जन्मांतर के भटकाव से मुक्ति का एकमात्र मार्ग मानव जीवन में धर्म के जरिए अर्जित किया जा सकता है। अतः मनुष्य जन्म में धर्म मार्ग के जरिए मुक्ति की राह पकड़ने के इस दुर्लभ अवसर को हाथ से नहीं जाने दे। इसी में हम सब का प्राणी मात्र का कल्याण है।