नई दिल्ली । दिल्ली में रविवार को कोरोना वायरस के 1450 नए मामले दर्ज किए गए। पिछले एक महीने में दिल्ली में एक दिन में कोरोना केसों की यह सबसे बड़ी छलांग है। इसने एक बार फिर से चिंता बढ़ा दी है कि राजधानी में फिर से संक्रमण बढ़ सकता है। बता दें कि पिछले एक महीने में दिल्ली में कोरोना के मामलों में जिस तरह से कमी देखने को मिली, यह देश में कोविड-19 पर कंट्रोल करने वाला प्रमुख केंद्र बन गया। दिल्ली में पिछले एक महीने में एक तरह से कोरोना के बहुत कम मामले देखने को मिले, मगर अचानक कोरोना के इस आंकड़े के बढ़ने से डॉक्टर से लेकर पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स तक चिंतिंत हैं। उनका कहना है कि कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सुरक्षा प्रोटोकॉल जैसे मास्क नहीं पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करना और अनलॉक में ज्यादा ढील भी इसकी वजह हो सकती है।

गुरुवार को दिल्ली का दूसरा सीरो सर्वे आया था, जिसमें यह पाया गया कि कोविड-19 के खिलाफ 29.1 फीसदी आबादी में एंटीॉबॉडी  मिले हैं। महामारी विज्ञानियों का कहना है कि इसका मतलब है कि दिल्ली की 70 फीसदी से अधिक आबादी संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील है। रविवार को आए रिकॉर्ड कोरोना केसों से राजधानी में पॉजिटिव केसों की संख्या 161,466 हो गई है, वहीं 16 नई मौतों से मरने वालों का आंकड़ा 4300 पहुंच गया है। हालांकि, राजधानी में 145,000 लोग कोरोना से रिकवर हो चुके हैं। दिल्ली सरकार ने अपने हेल्थ बुलेटिन में यह जानकारी दी। 

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा, ‘दिल्ली ने टेस्टिंग, निगरानी, नियंत्रण उपाय, संपर्क ट्रेसिंग और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के मामले में काफी अच्छा काम किया है, जिससे कोरोना के कुल संख्या में गिरावट आई है, मगर लोगों की सतर्कता की कमी ने कोरोना के मामलों में और गिरावट को रोक दिया है।’ पिछले सप्ताह में हर दिन औसतन 1269 नए मामले सामने आए हैं। 22 जुलाई के बाद कोविड-19 की यह उच्चतम संख्या है, जब उस वक्त कोरोना के 1,333 औसत मामले सामने आ रहे थे। 

नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के निदेशक डॉ. सुजीत के सिंह ने कहा कि अभी भी कम से कम 1.38 करोड़ आबादी है, जो दिल्ली के सीरो सर्वेक्षण के परिणामों के लिए अतिसंवेदनशील है और कमजोर आबादी और संक्रमण की दर के बीच सीधा संबंध है। बीमारी का ट्रांसमिशन अभी भी है, इसलिए कोरोना के मामले पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाएंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप टेस्टिंग कितना बढ़ाते हैं, यह सिर्फ एक सहायक उपाय है। क्योंकि आखिरकार गैर-औषधीय उपाय ही काम करेगा, जैसे कि सोशल डिस्टेंसिंग, खांसने का शिष्टाचार, मास्क पहनना अथवा चेहरे को ढंकना आदि। कम से कम चार-पांच महीने अभी और सावधानी बरतने की जरूरत है। बता दें कि एनसीडीसी ने जून के अंत और जुलाई की शुरुआत में पहला सीरो-सर्वेक्षण करने में दिल्ली सरकार का सहयोग किया था।

वहीं, दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि कोरोना केसों संख्या में उतार-चढ़ाव देखा गया है, मगर यह निष्कर्ष निकालना पर्याप्त नहीं है कि कोविड-19 के ट्रेंड में बदलाव है। अब तक दिल्ली में कोविड-19 की स्थिति नियंत्रण में है। हर दिन दर्ज मामलों की संख्या को ही सिर्फ नहीं देखा जाना चाहिए। कोरोना से रिकवरी दर, पॉजिटिविटी दर में कमी और मौतों के मामलों में कमी पर भी हमें विचार करना चाहिए। 

हालांकि, विशेषज्ञों ने एंटीजन परीक्षणों पर दिल्ली सरकार की अधिक निर्भरता के बारे में भी सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि वे गोल्ड स्टैंडर्ड आरटी-पीसीआर परीक्षणों के जितने विश्वसनीय नहीं हैं। पिछले एक महीने में दिल्ली में किए गए हर 10 परीक्षणों में से लगभग सात का एंटिजन परीक्षण हुआ है (रविवार को हुए कुल कोरोना जांच में 66 फीसदी एंटीजन टेस्ट के थे)। दरअसल, एंटीजन टेस्ट कभी-कभी गलत आंकड़ा भी देते हैं, जिसकी वजह से इस पर सवाल उठ रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *