सोनागिर। जीवन में धर्म व ईश्वर के प्रति समर्पण भाव होना अति आवश्यक है। धर्म व ईश्वर से जुड़े रहकर ही मानव उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव जीवन में जो व्यक्ति धर्म व ईश्वर के प्रति समर्पण रखता है, उसका धर्म व ईश्वर भी ख्याल रखता है। यह बात क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज सोमवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा में संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मुनिश्री ने कहा कि संतों की वाणी चोट करती है, लेकिन इससे जीवन की खोट निकाली जा सकती है। संत जो भी कहेगा, वह मानव कल्याण के लिए कहेगा। सत्संग कभी समाप्त नहीं होता है। संत धरती पर सबसे बड़ा शिल्पी है।

मुनिश्री ने कहा कि तू और तुम शब्द में प्रेम है, वहीं आप शब्द में परायापन झलकता है। जितने लोग समंदर, नदी, तालाब में डूबकर नहीं मरे होंगे, उतने शराब में डूबकर मर गए। शराब जैसी बुराई से तौबा करिए। जीवन सुखमय बनेगा। जाम की बजाय जाजम पर बैठकर सत्संग करना ज्यादा हितकर होगा।

मुनिश्री ने कहाकि भारतीय संस्कृति में माता-पिता की आज्ञा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के कई उदाहरण है। माता-पिता अपने बुजुर्गों की सेवा कर नई पीढ़ी में संस्कार दें। संत ही युवा पीढ़ी को सद् मार्ग और संस्कारवान बनाते हैं। समाज में बदलाव की शुरुआत हर आदमी को अपने घर से करना होगी।

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