नई दिल्ली | सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1993 के मुंबई बम विस्फोट में दोषी ठहराए गए तीन लोगों की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि उन्हें आत्मसमर्पण करने से तब तक के लिए छूट दी जाए जब तक कि उनकी दया याचिका पर राष्ट्रपति का निर्णय नहीं आ जाता।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जैबुन्निसा अनवर काजी, इशाक मोहम्मद तथा शरीफ अब्दुल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यदि इस तरह के अनुरोधों को स्वीकार कर लिया जाए तो राष्ट्रपति के पास दया याचिकाओं का अंबार लग जाएगा।  न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील फली नरीमन की यह दलील नहीं मानी कि किसी को दोषी ठहराए जाने से उसकी स्वतंत्रता वापस नहीं ली जा सकती। न्यायालय ने कहा कि हजारों लोग जमानत पर बाहर हैं और उनसे जब भी कहा जाएगा, वे आत्मसमर्पण करेंगे। जैबुन्निसा, इशाक और अब्दुल ने बीमारी तथा अधिक उम्र का हवाला देते हुए न्यायालय से राहत की गुहार लगाई थी। 70 साल की जैबुन्निसा किडनी के कैंसर से पीड़ित हैं, उनका इलाज चल रहा है। जैबुन्निसा ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्हें न केवल निरंतर चिकित्सक की देखरेख में रहने की जरूरत है, बल्कि हमेशा एक देखभाल करनेवाला भी चाहिए। इस हालत में जेल में रहते हुए वह बच नहीं पाएंगी। अपनी याचिका में जैबुन्निसा ने कहा कि उन्होंने सजामाफी के लिए राष्ट्रपति के समक्ष संविधान की धारा 72 के तहत याचिका दी है। इसी तरह, इशाक (88) और अब्दुल (76) ने अपनी उम्र का हवाला देकर न्यायालय से राहत की गुहार लगाई।

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