भिण्ड। गणाचार्य विराग सागर महाराज ने कहा कि वर्षा योग मंगल कलश स्थापना की प्राचीन पंरम्परा है, प्राचीन समय में संतजन जंगलों में चातुर्मास की स्थापना करते थे और चार माह तक वहीं एक स्थान पर धर्म ध्यान करते थे। यह स्थापना अषाढ शुक्ल चतुर्दशी से अषाढ शुक्ल पंचमी तक की जाती है तथा चातुर्मास निष्ठापन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को की जाती है। चातुर्मास स्थापना का जैन ही नहीं हिन्दू आदि साहित्यों में भी उल्लेख मिलते है।
भिण्ड के स्थानीय ऋषभ भवन में आयोजित एक धर्मसभा में आचार्य विराग सागर महाराज ने कहा कि प्राणियों की रक्षा के लिए संतजन चातुर्मास करते हैं। यू तो निर्ग्रन्थ संत बहते पानी की तरह होते हैं उनका कोई स्थायी मठ या आश्रम नहीं होता, उनकी न कोई ड्रेस या एड्रेस होता है। जिस तरह से नदी का बहता पानी पवित्र माना जाता है और आमजन स्थिर पानी को नहीं पीते, उसी प्रकार से संतों का भी आचरण होता है। वर्ष भर बिहार करने वाले संतजन एकमात्र चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहते है इसका मुख्य कारण यही है कि वर्षाकाल में पानी अधिक बरसने से जीवोत्पति हो जाती है कितना भी देखकर चला जाए फिर भी उन जीवों की रक्षा करना संभव नहीं है। अतः संतजन एक स्थान पर रहकर इस वर्षाकाल के समय को धर्म ध्यान करते हुए जैन दर्शन की प्रभावना करते है। इस चातुर्मास काल में संतजनों का अध्ययन त्याग, तपस्या में और भी बढ जाता है।
आचार्य श्री ने कहा कि चातुर्मास की प्रार्थना करना बहुत आसान है, लेकिन व्यवस्था बनान बहुत कठिन। भिण्ड की भूमि ऋषी मुनियों की भूमि है।
धर्मसभा में भिण्ड विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह विशेष रुप से उपस्थित थे।