इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की कवायद ने भारतीय उद्योगों के लिए चिंता पैदा कर दी है। भारतीय इस्पात उत्पादकों को अंदेशा है कि अगर अमेरिका ने शुल्क बढ़ाया तो उस हालत में भारतीय बाजार चीन एवं अन्य देशों से आने वाले अपेक्षाकृत सस्ते इस्पात से पट जाएंगे। ट्रंप ने कहा है कि इस सप्ताह अमेरिका इस्पात आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा सकता है, जबकि अमेरिका आने वाली एल्युमीनियम की खेप पर शुल्क 10 प्रतिशत बढ़ सकता है। सोमवार को उन्होंने सोशल मीडिया ट्वीटर पर शुल्क लगाने की एक बार फिर धमकी दी।
एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भारत से अमेरिका को होने वाले कुल निर्यात में इस्पात एवं एल्युमीनियम की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है। देश से अमेरिका को इस्पात का आयात महज 33 करोड़ डॉलर का रहा है, जो कुल इस्पात निर्यात का महज 2.04 प्रतिशत ही है। इसी तरह, इस्पात के तैयार उत्पादों का आंकड़ा 2016-17 में 1.23 अरब डॉलर रहा। दूसरी तरफ, एल्युमीनियम एवं एल्युमीनियम उत्पादों का कुल निर्यात 35 करोड़ डॉलर रहा, जो इस श्रेणी में भारत के कुल निर्यात का 2 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है।
वाणिज्य विभाग के अधिकारियों ने आगाह किया कि अमेरिका द्वारा इस्पात पर शुल्क बढ़ाने की स्थिति में भारतीय बाजार में चीन से इस्पात की आवक कई गुना बढ़ सकती है। इस बारे में एक अधिकारी ने कहा, ‘अमेरिका में खपने वाले चीन के इस्पात की औसत कीमत भारतीय इस्पात के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर कीमतों में अचानक से गिरावट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।’ इस्पात उद्योग के जानकारों का कहना है कि यह बात अधिक मायने रखेगा कि आखिर ट्रंप प्रशासन किस हद तक शुल्क बढ़ाता है।
भारतीय इस्पात संघ के एक वरिष्ठï प्रतिनिधि ने कहा, ‘शुल्क बढऩे की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्पात की कीमतें खासी कम हो सकती हैं, जिससे इस्पात निर्यातक बड़े देश माल खपाने के लिए मुफ ीद जगह तलाश करेंगे। हालांकि वैश्विक स्तर पर आपूर्ति मांग की तुलना में अधिक है लेकिन मांग बढ़ने के ताजा अनुमानों के बीच कीमतें बहुत अधिक नीचे नहीं आ सकती हैं।’
विदेशी आय एवं मौजूदा उत्पाद शुल्क के नजरिये से देखें तो रत्न एवं आभूषण क्षेत्र में ज्यादातर निर्यात पर शुल्क नहीं लगता है, दवा क्षेत्र की भी यही कहानी है। इन दोनों क्षेत्रों की भारत से होने वाले निर्यात में सर्वाधिक हिस्सेदारी होती है। हालांकि अमेरिका को जलीय उत्पादों के निर्यात में आई तेजी ने वहां के उत्पादकों की बेचैनी बढ़ा दी है। उनका कहना है कि भारतीय कंपनियां अपने सस्ते उत्पाद अमेरिकी बाजारों में खपा रही हैं।
निर्यात के लिहाज से अमेरिका भारत के लिए सबसे बड़ा बाजार है। 2016-17 में भारत से अमेरिका को 42.21 करोड़ डॉलर मूल्य का निर्यात हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पहले भी कह चुके हैं कि भारत से आने वाले सस्ते एवं कम गुणवत्ता वाले उत्पाद अमेरिका बाजार के हित प्रभावित कर रहे हैं। वैसे अमेरिका भारत के लिए आयात का भी एक प्रमुख स्रोत है, जहां से 22.30 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएं भारत आती हैं।
इस लिहाज से अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा 19.90 अरब डॉलर का है, लेकिन अमेरिका के दूसरे कारोबारी साझेदारों के मुकाबले यह अब भी बहुत कम है। मिसाल के तौर पर 2017 में अमेरिका के कुल 810 अरब डॉलर के व्यापार घाटे में चीन की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो चीन अमेरिका से जितनी रकम का आयात करता है, उससे 375 अरब डॉलर मूल्य से अधिक रकम का निर्यात करता है। शुल्कों में संभावित बदलाव फिलहाल यह स्पष्टï नहीं है कि ट्रंप प्रशासन केवल शुद्ध इस्पात उत्पादों पर शुल्क लगाएगा या सभी तरह के इस्पात उत्पाद इसकी चपेट में आएंगे। अमेरिका शुद्ध इस्पात का सबसे बड़ा वैश्विक आयातक है। फरवरी के मध्य में अमेरिकी सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इन दोनों जिंसों (इस्पात एवं एल्युमीनियम) के आयात की स्थिति की समीक्षा की गई थी।
इस रिपोर्ट में यह बात दोहराई गई कि अमेरिका दुनिया में इस्पात का सबसे बड़ा आयातक है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि फरवरी 2018 तक अमेरिका ने इस्पात पर 169 एंटी-डंपिंग ड्यूटी एवं काउंटरवेलिंग ड्यूटी लगा रखे थे, जिनमें 29 चीन के खिलाफ थे। रिपोर्ट में दो बातें और कही गई थीं, जो अब भारत से होने वाले निर्यात की दिशा तय करेंगे। इनमें भारत सहित 12 देशों से इस्पात आयात पर कम से कम 53 प्रतिशत शुल्क लगाना शामिल था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि किसी भी देश से इस्पात का कुल आयात 2017 में अमेरिका को उस देश से हुए निर्यात का 63 प्रतिशत पर सीमित किया जाएगा।