भोपाल। 6 सितंबर को पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष शुरू हो जाएगा। सोलह श्राद्ध 20 सितंबर को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर संपन्न होंगे। पुरोहितों के मुताबिक इस माहलय व्रत के प्रधान देवता भगवान विष्णु एवं प्रतिनिधि देवता भगवान सूर्य माने गए हैं।

पितृ संज्ञक सूर्य इस व्रत के आरंभ से ही अपनी सौराशि सिंह में रहेंगे। इससे इस बार के पितरों का आगमन एवं गमन दोनों शुभताकारी हैं। इस दौरान गौ, श्वान को भोजन, मछलियों को दाना और चीटियों को मिष्ठान खिलाने से भी पुरखे तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।

ज्योतिष मठ संस्थान, नेहरू नगर के संचालक पं. विनोद गौतम ने बताया कि यह व्रत पितरों की तृप्ति के लिए किया जाता है। पुरखों को प्रसन्न करने के लिए सूर्य को जल देना पुण्य प्राप्त कराता है। तिथि के दिन ब्राह्मण एवं पुरोहितों को भोजन प्रसादी कराने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पंचप्राणियों में गाय को ग्रास देने का विशेष महत्व है। वहीं जलचर में मछलियों को भोजन, फलचर में श्वान को भोजन एवं नवचर में कौए को भोजन कराने से पुरखों को तृप्ति प्राप्त होती है।

इन्हें यह खिलाएं

तिथियों पर चीटी को मिष्ठान, गौ दान, शैय्या दान, अन्न दान, वस्त्र दान के साथ पंचपात्रों का दान करने से पुण्य के साथ हमारे पूर्वज प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को करने के लिए व्रती को पूर्व से ही श्राद्ध तिथि ज्ञात कर लेना चाहिए। तिथि का अभिप्राय उस दिन से होता है, जिस दिन उन पितरों का दाह संस्कार किया जाता है।

उस तिथि को प्रातः ब्रह्म मुहुर्त में व्रत का संकल्प लेकर पितरों का आह्वन करना चाहिए। तत्पश्चात सरोवर आदि में उनके निमित्त तर्पण करना चाहिए। साथ ही कुलवधु द्वारा बनाए गए पकवानों का भोग पितरों के निमित्त लगाना चाहिए। विधि-विधान से यह कार्य पूर्ण होने पर धन-धान्य, यश कृति के साथ वंश वृद्धि का का वरदान पूर्वजों द्वारा प्राप्त होता है। पितृमोक्ष आमावस्या के दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण किया जाता है। ऊं पितृ देवायः नमः का उच्चारण कर भी हम सभी प्रकार का कर्मकाण्ड स्वतः ही पूर्ण कर सकते हैं।

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