आज भले ही चंबल घाटी को कुख्यात डाकुओं की शरणस्थली के रूप मे जाना जा रहा हो लेकिन शायद ही इस बात को बहुत कम ही लोग जानते होगे कि आज की खूखार समझी जाने वाली चंबल घाटी मे शरण पाने वाले कुख्यात डाकुओ ने स्वतंत्रता आंदोलन मे भी हिस्सेदारी करके अपने देशप्रेम को ना केवल उजागर किया बल्कि अपनी शहादत देकर बलदानी छवि बनाने मे भी कामयाबी पाये।
कालेश्वर महापंचायत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार डाकुओ की देशप्रेमी छवि का जिक्र करते हुये बताया कि देश के स्वतंत्रता आदोंलन के दौरान चंबल के खूंखार बागी ब्रहमचारी ने अपने सैकडो सर्मथक बागियो के साथ हिस्सेदारी की। अग्रेजी फौज से मुकाबला करते हुये ब्रहमचारी उनके करीब 35 साथी देश की आजादी की लडाई लडते हुये अपना बलिदान दिया। चंबल घाटी मे डाकुओ की बारे मे गहरा अध्ययन करने वाले जागरूक चकरनगर वासी हरीशचंद्र तिवारी का कहना है कि आजादी की लडाई के दौरान एक ऐसा दौर भी आया जब हर आमौखास के साथ
चंबल के डाकुओ मे भी आजादी हासिल करने का जुनुन पैदा हो गया था इसी परिपेक्ष्य मे ब्रहमचारी नामक डकैत ने अपने साथियो के साथ आजादी की लडाई लडी। चंबल के महत्व की चर्चा करते हुये वे बताते है कि जंगे आजादी मे चंबल घाटी का खासा योगदान माना जा सकता है क्यो कि आजादी की लडाई के दौरान कई ऐसे गांव रहे है जिनको या तो अगं्रेज अफसर खोज नही पाये या फिर उन गांव मे घुस नही पाये।
डाकू छवि वाले समझे जाने वाली चंबल घाटी की ऐसी भी तस्वीर है जहा के देशप्रेम को उजागर करने के लिये काफी मानी जा सकती है लेकिन देश की आजादी के बाद चंबल मे पनपे बहुतेरे डकैतो ने चंबल के बागियो की देश प्रेम की छवि को पूरी तरह से मिटा करके रखा दिया है। इसके बावजूद आजादी की लडाई मे चंबल के बागियो के योगदान को भुलाया नही जा सकता है।
अपने देश को अग्रेजो की गुलामी से आजाद कराने के लिये देश के हर वासिंदे ने अपने अपने तरीके से अपनी सामर्थ्य के अनुसार लडाई लडी है। हर किसी के जुनून ने देश को आजादी दिलाई है। ऐसे मे अगर कोई अपराधी देश की आजादी के लिये लडाई लडे तो वाकई हैरत की बात ही मानी जायेगी वैसे तो चंबल के डाकुओ की छवि काफी खूखांर अपराधी के तौर पर हर किसी को पता है लेकिन यह बात बहुत कम ही लोग जानते है कि चंबल के डाकुओ ने कभी आजादी की लडाई मे भी खासी हिस्सेदारी करके अपना बलिदान दिया है।
स्वतंत्रता आदोलंन के दौरान साल 1914.15 मे क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी मे क्रान्तिकारियो के एक संगठन मातृवेदी का गठन किया। इस संगठन मे हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आवाहन किया गया जो देश हित मे काम करने का इच्छुक हो इसी दरम्यान सहयोगियो के तौर चंबल के कई बागियो ने अपनी इच्छा आजादी की लडाई मे सहयोग करने के लिये जताई।
ब्रहमचारी नामक चंबल के खूखांर डाकू के मन मे देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हो गया और उसने अपने एक सैकडा से अधिक साथियो के साथ मातृवेदी संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रहमचारी डकैत के क्रान्तिकारी आंदोलन से जुडने के बाद चंबल के क्रान्तिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ गई तथा ब्रिटिश शासन के दमन चक्र के विरूद्व प्रतिशोध लेने की मनोवृत्ति तेज हो चली। ब्रहमचारी अपने बागी साथियो के साथ चंबल के ग्वालियर मे डाका डालता था और चंबल यमुना मे बीहडो मे शरण लिया करता था। ब्रहमचारी ने लूटे गये धन से मातृवेदी संगठन के लिये खासी तादात मे हथियार खरीदे।
इसी दौरान चंबल संभाग के ग्वालियर मे एक किले को लूटने की योजना ब्रहमचारी और उसके साथियो ने बनाई लेकिन योजना को अमली जामा पहनाये जाने से पहले ही अग्रेंजो को इस योजना का पता चल गया ऐसे मे अग्रेजो ने ब्रहमचारी के खेमे मे अपना एक मुखबिर घुसेड दिया और पडाव मे खाना बनाने के दौरान ही इस मुखबिर ने पूरे खाने मे जहरीला पदार्थ डाल दिया। इस मुखबिर की करतूत का ब्रहमचारी ने पता लगा कर मुखबिर को मारा डाला लेकिन तब तक अग्रेजो ने ब्रहमचारी के पडाव पर हमला कर दिया जिसमे दोनो ओर से काफी गोलियो का इस्तेमाल हुआ। ब्रहमचारी समेत उनके दल के करीब 35 बागी शहीद हो गये।
चंबल घाटी का खासा योगदान रहा है आजादी की लडाई मे। कहा यह जा रहा है कि कई ऐसे गांव रहे है जिन गांव मे अग्रेंज प्रवेश करने को तरसते रहे है और ऐसे भी कई गांव रहे है जहां पर अग्रेंज अफसरो को मौत के घाट तक उतार दिया है। चंबल इलाके का कांयछी एक ऐसा गांव माना गया है जहंा पर अग्रेंज अफसरो आजादी के दीवानो को खोजने के लिये गांव को ही नही खोज पाये। इस घाटी के बंसरी गांव के तो दर्जनो शहीद हुये है।
आज भले ही चंबल घाटी को कुख्यात डाकुओ की शरणस्थली के रूप मे जाना जा रहा है लेकिन इस चंबल घाटी की ऐसी भी तस्वीर है जहा के देशप्रेम को उजागर करने के लिये काफी मानी जा सकती है। देश की आजादी के बाद चंबल मे पनपे बहुतेरे डकैतो ने चंबल के बागियो की देश प्रेम की छवि को पूरी तरह से मिटा करके रखा दिया है।