ग्वालियर। मध्यप्रदेष के चंबल संभाग के भिण्ड और मुरैना का जवान छत्तीसगढ के सुकमा में एक नक्सली हमले में षहीद हो गए। छुट्टी से ड्यूटी पर वापस जाते समय जवान जितेन्द्र सिंह कुषवाह ने कहा था कि दादा बच्चों का ख्याल रखना…अब यह आपके भरोसे रहेंगे। घर से नक्सलियों के गढ छत्तीसगढ के सुकमा जाते वक्त सीआरपीएफ जवान जितेंद्र सिंह ने यह आखिरी शब्द बडे भाई शिक्षक सुरेंद्र सिंह से कहे थे। जितेंद्र 25 दिन की छुट्टी बिताकर 2 दिन पहले रविवार को ही नक्सलियों से लोहा लेने ड्यूटी पर वापस गए थे। बडे भाई या घर में किसी ने नहीं सोचा था कि अब वे जितेंद्र को नहीं देख पाएंगे। शहादत की खबर घर आई तो सभी का रो-रोकर बुरा हाल है।
शहर के चतुर्वेदी नगर ब्रह्मपुरी निवासी जितेंद्र सिंह (35) 2005 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए। देश सेवा का जज्बा उन्हें इस नौकरी में लेकर गया। हाल में वे छत्तीसगढ सुकमा के किस्टाराम में 212 कोबरा बटालियन में पदस्थ थे। कल सुबह जितेंद्र सिंह अपने साथियों के साथ किस्टाराम से पलोडी गश्त के लिए निकले थे। इसी दौरान नक्सलियों ने 40 किलो आईईडी से ब्लास्ट किया, जिसमें भिण्ड के सपूत जितेंद्र सिंह अपने आठ और साथियों के साथ शहीद हो गए।
सीआरपीएफ के अफसरों ने शहादत की सूचना के लिए जितेंद्र सिंह की पत्नी सोनम सिंह के मोबाइल पर फोन किया। श्रीमती सिंह घर में काम कर रही थी। मोबाइल बडे भाई शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने रिसीव किया। छोटे भाई की शहादत की खबर सुन उनका दिमाग सुन्न् हो गया। लगा जैसे पैरों के नीचे से किसी ने जमीन खींच ली, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और घर मंे किसी को अहसास नहीं होने दिया कि लाडला छोटा भाई जितेंद्र अब इस दुनिया में नहीं रहा।
जितेंद्र की शहादत की खबर सुनकर बडे भाई सुरेंद्र का मन तो रो रहा था, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि मां और बहू सोनम सिंह को किस तरह से यह खबर बताएं। शाम तक वे घर में सभी से इस खबर को छिपाए रहे, लेकिन जब लोगों की भीड घर के बाहर जमा होने लगी तो मां सुमन देवी को बेचौनी हुई। इसके बाद एक-दूसरे के जरिए यह बात उन तक पहुंची। मां का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। वे बहू सोनम सिंह को देखकर बिलख-बिलखकर रो रही थी। शहीद की पत्नी का भी रो-रोकर बुरा हाल था। आसपास की महिलाएं ढांढस बंधाकर उन्हें चुप कराती, लेकिन आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
शहीद जितेेंद्र सिंह के परिवार में पत्नी सोनम सिंह, बडी बेटी रुचि (4), सैजल (3), आशुतोष (2) हैं। ट्रेजरी में क्लर्क की नौकरी से रिटायर पिता रामवीर सिंह, मां, बडे भाई शिक्षक सुरेंद्र सिंह, मझले भाई उज्जैन में शिक्षक महेंद्र सिंह कुशवाह और उनका परिवार है। कल जितेंद्र सिंह की शहादत की खबर सुनकर घर में रुदन हुआ तो बेटी रुचि और सैजल सहम सी गईं। दोनों की नजरें बता रही थी कि वे पूछना चाह रही हैं कि उनके घर में क्या हुआ है, लेकिन वहां मौजूद किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि नक्सलियों की कायराना हरकत से पिता के साये से महरूम हुई बेटियों को कोई यह बता पाए कि उनके प्यारे पापा अब कभी ड्यूटी से नहीं लौटेंगे। मासूम बेटियों को देखने वाले अपनी आंखों में आंसू नहीं रोक पा रहे थे।

मुरैना के खुश मिजाज अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले रामकृष्ण को पता था कि मौत कभी उनके कदम चूम सकती है। इसलिए वह आखिरी बार जब घर आए थे तो पत्नी प्रभा को लाइसेंसी पिस्टल और राइफल चलाना सिखा गए थे। उनका कहना था कि कभी अगर वो नहीं रहें तो उदास मत होना घर की जिम्मेदारी निभाना।
छत्तीसगढ के सुकमा के किस्तावर इलाक में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 9 जवान शहीद हुए हैं। उनमें से एएसआई (जीडी) रामकृष्ण सिंह तोमर ग्वालियर के डीडी नगर में परिवार सहित रहते हैं। पति की मौत की खबर सुनते ही प्रभा गुस्से में आ गईं। वह रोते हुए बार-बार कहती रहीं कोई मुझे बंदूक लाकर दे दो मैं उनके बदले 10 नक्सली को मार गिरा दूंगी। मेरे पति मुझे लौटा दो। हालांकि पुश्तैनी रूप से वह मुरैना के पोरसा के निवासी हैं। उनका शव एयरपोर्ट से सीधे गांव के लिए ले जाया गया। जहां पैतृक गांव मंे अन्तिम संस्कार संस्कार हुआ। षहीद जवान को हजारों लोगों ने नम आंखों से विदाई दी।
रामकृष्ण के शहीद होने की खबर मिलने के बाद डीडी नगर जीएल सेक्टर में शहीद के घर लोगों का जुटना शुरू हो गया। खबर मिलने के बाद पत्नी प्रभा, बेटे विक्की उर्फ विनय और बेटी पिंकी को अन्य परिजन संभाल रहे थे। शहीद के चाचा रामविलाख सिंह तोमर जो रिटायर्ड वन विभाग के अधिकारी हैं। उन्होंने बताया कि जब भी रामकिशन मिलता था तो बात होती थी। अक्सर कहता था चाचा रोज खतरों पर चल रहे हैं। कब नीचे से ब्लास्ट हो जाए और मौत आ जाए कुछ नहीं कह सकते। बातों ही बातों में हंसमुख रामकिशन की आंखों में आंसू आ जाते थे। कहीं न कहीं वह जानते थे कि जहां वह तैनात हें वहां के हालात ही कुछ ऐसे हैं जहां कभी भी जान जा सकतीहै।
शहीद रामकृष्ण सिंह की पत्नी प्रभादेवी ने बताया कि मंगलवार सुबह 11 बजे पति का फोन आया था। तब उनकी बात हुई थी। उन्होंने बच्चों का ध्यान रखने और बेटे के कराटे क्लास चालू करवाने को कहा था। कुछ देर बात करने के बाद कहा था कि हम 10 लोग की टीम सुकमा के जंगल में सर्चिंग करने जा रही है। लौटकर शाम को 5 बजे के लगभग बात करुंगा। शाम को पत्नी इंतजार कर रही थी कि वो फोन कर अधूरी बातों को पूरा करेंगे, लेकिन किसी ने न्यूज में सुकमा में हुए ब्लॉस्ट और सीआरपीएफ के 9 लोगों के शहीद होने की बात बताई। इसके बाद से प्रभा व बच्चे पिंकी और विक्की व्यथित हो गए। लगातार उनके नंबर पर संपर्क कर रहे थे। इसके बाद शाम को 4 बजे कमाडेंट ने घर पहुंचाई रामकृष्ण के शहीद होने की सूचना। रामकृष्ण् 6 महीने के लम्बे अंतराल के बाद अभी होली से पहले ही अपने घर छुट्टी लेकर आए थे। पहले गांव में मां के पास रहे फिर होली का त्योहार बच्चों और पत्नी के साथ मनाने डीडी नगर जीए सेक्टर अपने घर आ गए। होली के बाद वह बेटी की शादी के लिए लोगों से अच्छे लडकों को देखने की बात भी करते नजर आए। अभी दो दिन पहले रविवार सुबह वह छत्तीसगढ अपनी 212 वीं बटालियन के लिए निकले थे। मंगलवार सुबह ड्यूटी ज्वाइन करने के बाद गश्त पर निकले थे तभी यह हादसा हो गया।
रामकृष्ण के दोस्त मोहन तिवारी ने बताया कि उनका दोस्त जिंदा दिल इंसान था। जिंदगी को कैसे जीना है यह कोई उससे सीखे। वह चला जरुर गया, लेकिन दोस्तों को जीना सीखा गया। वैसे उसे छुट्टी कम मिलती थी। इस बार होली पर आया था। होली के दिन में घर पर बैठा था। मुझे फोन कर घर बुलाया। रंग लगाया और बोला होली का त्योहार मनाओ। इसके बाद सारे पुराने दोस्तों को फोन लगाकर बुलाया। घर के बाहर डेक बजाकर खूब डांस किया। कहीं न कहीं उसे आभास था कि कुछ गलत होने वाला है। तभी वह सबको इतना प्यार देकर चला गया।
शहीद अपने बेटे विक्की उर्फ विनय (17) जो की 11वीं का छात्र है। उसे कराटे में चौम्पियन बनाना चाहता था। वह चाहते थे कि स्पोर्टस कोटे से बेटा अच्छी नौकरी करें। बेटी पिंकी (20) बीकॉम कर चुकी है। उसे बैंक अधिकारी बनाने और अच्छे घर में रिश्ता करने की तैयारी थी।

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