इंदौर। यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शहर की पहचान गेर को शामिल कराने का जज्बा सोमवार को रंगपंचमी पर इंदौर ने दिखाया। अपनी उत्सव प्रियता के लिए खास पहचान रखने वाले शहर के बाशिंदों ने इस रंगों के त्योहार को नया आयाम दिया। राजवाड़ा पर लोगों के बीच जाने-अनजानों को हरे, पीले, लाल, गुलाबी रंगों से रंगने का ऐसा उत्साह दिखा जिसने आंकड़ों के पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए।
हर बार की तरह पुरुष वर्ग में हर उम्र के लोगों की बड़ी तादात तो थी ही लेकिन युवतियां और महिलाओं के साथ बच्चों की भागीदारी ने लोगों को चौंकाया। राजवाड़ा चौक के अलावा कृष्णपुरा पुल, जवाहर मार्ग तक भीड़ का नजारा दिखाई दिया। राजवाड़ा का चप्पा-चप्पा रंग प्रेमियों से भरा हुआ था। इनके बीच शहर की 72 साल की परंपरानुसार गेर मिसाइलें, वाटर गन, पानी के टैंकरों से सूखे-गीले रंग उड़ाते हुए गुजर रही थी। शहर के हृदय स्थल पर लोगों के जुटने का सिलसिला सुबह 9.30 बजे से ही शुरू हो गया था। गेर आने से पहले ही लोगों ने एक दूसरों पर रंग-गुलाल उड़ाना शुरू कर दिया था।
पहली गेर शहर की सबसे पुरानी टोरी कॉर्नर रंगपंचमी समिति की पहुंची। इसके आते ही रंगपंचमी का उल्लास दोगुना हो गया। मल्हारगंज, गोराकुंड, खजूरी बाजार से होते हुए राजवाड़ा पहुंची गेर ने स्वचलित मिसाइलों से 50 फीट ऊंचाई तक रंग फेंका। पीछे टैंकर और अन्य वाहनों के माध्यम से गेर के कार्यकर्ता लोगों पर रंग बिखर रहे थे। दोनों तरफ बने भवन से पलटवार भी हो रहा था। गुब्बारों और बाल्टियों से रंग और पानी फेंका जा रहा था।
खचाखच भरे राजवाड़ा पर लोगों के हुजूम का दबाव मामूली सा कम भी नहीं हुआ था कि शहीदों को याद करती रसिया कॉर्नर नवयुवक मित्र मंडल की गेर पहुंची। ओल्ड राजमोहल्ला से आई यह गेर 51-51 फीट की दो मिसाइलों से रंग बरसाते आई। गेर में शामिल लोग पुलवामा के शहीदों को याद करने के साथ भारत माता के जयघोष लगा रहे थे। साथ ही हेलमेट पहने युवा भी आकर्षण का केंद्र थे।
राजवाड़ा चौक पूरी तरह खाली भी नहीं हुआ था कि कम्प्रेशर से गुलाल उड़ाती 47 साल पुरानी मॉरल क्लब की गेर मल्हार पल्टन से आई। गेर में घोड़े-बग्घी पर वरिष्ठ और बुजुर्ग थे। टैंकर से पानी का फव्वारा छोड़ा जा रहा था। रास्ते में वालियंटर्स की टीम अनुशासन बनाने की कोशिश कर रही थी लेकिन रंगों के उल्लास के आगे यह प्रयास नाकाफी रहा। डीजे पर युवा थिरकते हुए चल रहे थे।
हिंद रक्षक संगठन की 1998 से निकाली जा रही राधा-कृष्ण की फाग यात्रा टेसू के फूलों से बने रंग को उड़ाते हुए आई। नृसिंह बाजार नृसिंह मंदिर से निकली यात्रा में राधा-कृष्ण के रथ को महिलाएं खीच रही थीं। भजन गायक द्वारका मंत्री राधा-कृष्ण के भजनों की प्रस्तुति दे रहे थे। यात्रा में बग्घियां भी थीं। इसमें महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हुईं। आयोजकों के मुताबिक, एक हजार किलो टेसू के फूल के रंग के अलावा अन्य प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया।
सबसे अंत में 64 साल पुरानी शहर की दूसरी सबसे पुरानी गेर संगम कॉर्नर राजवाड़ा पहुंची। इसमें रंग-गुलाल के साथ अग्नि और पृथ्वी मिसाइल से रंग-गुलाल और फूल बरसाए जा रहे थे। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर से लाई गई 21 फीट की ध्वजा और उज्जैन के कड़ाबीन के धमाकों से फिजा में रंग-गुलाल घोला जा रहा था। इसमें मुस्लिम युवाओं ने भी भाग लिया। देश भक्ति के तरानों पर थिरकते हुए लोग गेर में शामिल हुए। दोपहर करीब 2.30 बजे पुलिसकर्मियों ने रंग प्रेमियों को राजवाड़ा से रवाना करना शुरू कर दिया। करीब साढ़े तीन घंटे रंगों के त्योहार का उल्लास चरम पर रहा।
गेर में शामिल होने का उत्साह लोगों में देखते ही बन रहा था। परिवार के साथ राजवाड़ा आने वाले लोग गोपाल मंदिर, आड़ा बाजार, कृष्णपुरा छत्री, एमजी रोड आदि से पहुंच रहे थे। राजवाड़ा चौक के आसपास 100 मीटर के दायर में नो स्मोकिंग जोन बन गया था। दुकानदार किसी को धूम्रपान की सामग्री नहीं दे रहे थे। हालांकि बीतते वक्त के साथ यह पाबंदी कम होती चली गई। गेर देखने आए लोगों को वाहन पार्किंग को लेकर खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। बड़ी संख्या में लोग वाहनों से यहां पहुंचे थे। इसके चलते वाहन खड़े करने के लिए लोगों को मन मुताबिक स्थान नहीं मिल रहा था। हर बार से बढ़ी हुई संख्या के चलते राजवाड़ा चौक पर कई बार धक्का-मुक्की की स्थिति बन रही थी। लोगों को निकलने में खासी समस्या का सामना करना पड़ रहा था। गेर देखने के लिए लोगों की आवाजाही का सिलसिला लगातार चार घंटे तक बना रहा। जितने लोग चौक में पहुंच रहे थे उतने ही बाहर भी निकल रहे थे।
तंबोली बाखल निवासी 65 वर्षीय रमेश कुशवाह बताते हैं कि मैं पिछले 50 सालों से गेर देखने आ रहा हूं, लेकिन ऐसा हुजूम पहले नहीं देखा। गेर देखने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। लोग परिवार के साथ आ रहे हैं। यह हमारे शहर के लिए अच्छी बात है। 55 वर्षीय बाबूसिंह तिवारी कहते हैं कि सालों से गेर देखने आ रहा हूं। एक समय लोगों का गेर के प्रति रुझान कम हो गया था। एक बार फिर लोग शहर की इस परंपरा से जुड़ रहे हैं। यह हमारे लिए अच्छी बात है। इस बार का लोगों का हुजूम देखते ही बन रहा है।
चार गेर और एक फाग यात्रा निकली
साढ़े तीन घंटे चरम पर रहा रगों का उल्लास
चार किलोमीटर मार्ग पर उत्सवी उल्लास
दो किलोमीटर लंबा कारवां
12 हजार किलो से अधिक रंग उड़ाया
60 से अधिक वाहन शामिल हुए