नई दिल्‍ली। कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान फ्रंटलाइन वर्कर्स यानी चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर नौकरी की। सैकड़ों फ्रंटलाइन वर्कर्स ने अपनी जान भी गंवाई। यही वजह है कि देश में टीकाकरण अभियान शुरू हुआ तो सबसे पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीके लगाए गए। इसका नतीजा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान नजर आया। 

पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में जान गंवाने वाले फ्रंटलाइन वर्कर्स की संख्या में कमी आई। हालांकि, पत्रकार इतने भाग्यशाली नहीं रहे। कोरोना काल में लगातार ड्यूटी करने के बावजूद पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर्स का दर्जा नहीं दिया गया। न ही उन्हें टीकाकरण अभियान में प्राथमिकता मिली। इसका नतीजा यह रहा कि अब तक 300 से ज्यादा पत्रकारों ने अपनी जान गंवा दी, जिनमें कई दिग्गज पत्रकार भी शामिल थे। 

आंकड़ों पर गौर करें तो अप्रैल 2021 के दौरान रोजाना औसतन तीन पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई। वहीं, मई में यह आंकड़ा बढ़कर 4 मौत रोजाना हो गया। बता दें कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने न सिर्फ कई वरिष्ठ पत्रकारों को निगल लिया, बल्कि देश के अलग-अलग जिलों, कस्बों और गांवों में काम करने वाले पत्रकारों की जिंदगी भी छीन ली। दिल्ली की एक संस्था के मुताबिक, अप्रैल 2020 से मई 2021 के दौरान कुल 238 पत्रकारों की मौत कोरोना की वजह से हो गई। 

जानकारी के मुताबिक, कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने मीडिया इंडस्ट्री पर जमकर कहर बरपाया, जबकि पहली लहर में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक, पहली लहर के दौरान अप्रैल 2020 से दिसंबर 2020 तक सिर्फ 56 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई थी। वहीं, दूसरी लहर में एक अप्रैल 2021 से 16 मई 2021 तक 171 पत्रकारों की मौत हो गई। जनवरी से अप्रैल के दौरान 11 पत्रकारों को कोरोना ने निगल लिया था। 

दिल्ली की संस्था की ओर से जारी 238 मौतों के आंकड़ों से इतर 82 अन्य पत्रकार भी अपनी जान गंवा चुके हैं। हालांकि, इनके नामों की फिलहाल पुष्टि नहीं हुई है। संस्था की डायरेक्टर डॉ. कोटा नीलिमा ने बताया कि अब तक कोरोना से 300 से ज्यादा पत्रकारों की मौत हो चुकी है। इनमें अब तक 238 पत्रकारों के नामों की पुष्टि हो चुकी है।

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