भोपाल । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नदियों को जोडऩे का सपना पूरा करने की दिशा में राज्य सरकार नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना के बाद नर्मदा-मालवा लिंक पर केंद्र से मंजूरी मिलते ही काम शुरू करेगी। नर्मदा घाटी विकास के प्रमुख सचिव रजनीश वैश ने बताया, कि मालवांचल की जल समस्या के स्थाई समाधान के लिए नर्मदा मालवा लिंक परियोजना बनाई गई है। इसमें गंभीर, कालीसिंध, क्षिप्रा और पार्वती नदी तक नर्मदा का पानी पाईप लाईन के जरिये प्रवाहित की जायेगी। सबसे पहले नर्मदा गंभीर लिंक परियोजना के अंतर्गत ओंकारेश्वर परियोजना की दांयी तट नहर से 15 क्यूमेक्स जल करीब 400 मीटर उद्वहन कर गंभीर नदी में प्रवाहित किया जायेगा। गंभीर नदी में पानी पहुॅचाने से पहले पाईप लाईन द्वारा प्रवाहित जल से इंदौर और उज्जैन जिले की 50 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई मिलेगी। उद्वहन किये जाने वाले 15 क्यूमेक्स जल में से 12.5 क्यूमेक्स जल सिंचाइ के लिए, 1.5 क्यूमेक्स जल पीने के लिए और 1.0 क्यूमेक्स जल औद्योगिक उपयोग के लिए आरक्षित किया गया है । आरंभिक योजना के अनुसार जल उद्वहन के लिए 4 पम्प हाउस बनाने होंगे। उद्वहन में करीब 8.5 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होगी । श्री वैश ने बताया, कि नर्मदा मालवा लिंक की शेष 2 परियोजनाओं को आगामी चरणों में पूरा किया जायेगा ।
उन्होंने कहा, कि नर्मदा.मालवा लिंक की सम्पूर्ण परियोजना का 90 फीसदी पानी सिंचाई के लिए तथा 5 फीसदी पानी मालवा क्षेत्र के 3 हजार गांवों को नल के जरिये पीने के लिए और शेष 5 फीसदी उद्योगों के लिए उपलब्ध होगा। इससे 6 लाख 50 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए ठोस व्यवस्था की जायेगी । कुल 26 हजार, 600 करोड़ की यह परियोजना कई चरणों में पूरी होगी। जमीन के नीचे से 15 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन बिछायी जायेगी। जहां से होकर पाईप लाईन गुजरेगी उनमें अधिकतर राजस्व भूमि है। जबकि वन भूमि केवल 35 से 40 फीसदी ही होगी।
श्री वैश ने बताया, कि एक ओर मध्यप्रदेश सरकार बाहर के निवेशकों को यहां उद्योग लगाने के लिए आमंत्रित कर रही है । दूसरी ओर उद्योगों के लिए भी पानी की जरूरत है। मालवा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कृषि आधारित उद्योग आ रहे हैं। रतलाम में अंगूर , स्टॅ्रवेेरी, गेहूॅ तथा महू में आलू भारी मात्रा में पैदा होता है। इंदौर को उद्यानिकी और पीथमपुर, देवास को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।इसके अलावा दिल्ली-मुंबई कॉरिडोर भी इसी क्षेत्र में है। इन सबके लिए बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता तो होगी ।
नदियों को जोडऩे से जैव विविधता के प्रभावित होने के सवाल पर उन्होंने कहा, कि राजस्थान से सटे मालवा के 8 जिले धीरे-धीरे रेगिस्तान में परिवर्तित होते जा रहे हैैं। इन जिलों के 20 में से 18 विकास खण्ड पानी के संकट से जूझ रहे है। इस संकट से उबारने के लिए यही एक मात्र रास्ता है। क्योंकि इस इलाके में भू-जल लगभग समाप्त हो चुका है और जलवायु परिवर्तन के चलते बरसात का कोई भरोसा नहीं रहता। नलकूपों में लाल रंग का पानी आने लगता है। यही स्थिति बनी रही, तो 5 साल बाद सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलेगा। इसलिए नदियों को जीवनदान देना ही एक मात्र उपाय है।