भोपाल !  केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मध्य प्रदेश को बड़ी आस थी, मगर वह अधूरी ही रह गई, क्योंकि यहां के किसी भी सांसद को मंत्री पद हासिल नहीं हो सका। राज्य में इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, इसी के चलते हर किसी को उम्मीद थी कि सोमवार को हो रहे मंत्रिमंडल विस्तार में मध्य प्रदेश के एक से दो सांसदों को जरूर मंत्री बनाया जा सकता है। कभी केंद्र सरकार में राज्य से चार से पांच मंत्री रहे हैं। इस समय सिर्फ कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया ही मंत्री हैं।

राज्य से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया व राष्ट्रीय सचिव अरुण यादव भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इन दोनों मंत्रियों के हटाए जाने के बाद से ही अन्य लोगों को मौका मिलने की उम्मीद थी। सांसद मीनाक्षी नटराजन के पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी होने के अलावा सज्जन वर्मा व प्रेमचंद्र गुड्डू का अन्य ताकतवर नेताओं से नाता रखने के चलते उनके मंत्री बनने की संभावना जताई जा रही थी।

मनमोहन के मंत्रिमंडल विस्तार में मध्य प्रदेश को महत्व न मिलने से कांग्रेस की प्रदेश इकाई में भी मायूसी है, मगर कोई कुछ बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अभय दुबे का कहना है कि पार्टी का अधिकार क्षेत्र है और उन्होंने इसी आधार पर फैसला लिया है, लिहाजा इस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की जा सकती।

राज्य को प्रतिनिधित्व न मिलने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रदेश अध्यक्ष व सांसद नरेंद्रसिंह तोमर ने कहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं से उन्हीं के केंद्रीय नेताओं का विश्वास उठ चुका है। मंत्रिमंडल विस्तार में राज्य से किसी भी सांसद को शामिल नहीं किया जाना यह दर्शाता है कि खत्म होती कांग्रेस में मध्य प्रदेश कांग्रेस का अस्तित्व भी समाप्त हो चुका है।

उन्होंने कहा कि राज्य के कांग्रेस नेताओं को विचार करना चाहिए कि जब उनके ही दल में उनकी कोई अहमियत नही हैं, तो प्रदेश की जनता के बीच वे कौन-सा मुंह लेकर जाएंगे।

केंद्रीय मंत्रिमडल के विस्तार में राज्य के नेताओं को जगह न मिलने की वजह कोई जान नहीं पा रहा है, मगर अनुमान यही लगाया जा रहा है कि कहीं इसमें भी तो गुटबाजी आड़े नहीं आई!

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