इंदौर। देश के हास्य कवियों की श्रृंखला सुरेंद्र शर्मा के जिक्र के बिना अधूरी है। हिंदी साहित्य समिति में मंगलवार को होने वाले कवि सम्मेलन के सिलसिले में ये मूर्धन्य कवि इंदौर तशरीफ ला रहे हैं। इस मौके पर हुई बातचीत में उन्होंने साहित्य के साथ देश की अतीत की गलतियों से लेकर वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों का निष्पक्ष विवेचन किया। धर्म को धंधा बनाने वालों से लेकर किसानों और आम आदमी के संबंधों के ताने-बाने पर भी बेबाकी से राय रखी।
बकौल शर्मा सोशल मीडिया पर भी कई बार इतनी अच्छी कविताएं पढ़ने में आ रही हैं, जो आजकल मंचों पर भी नहीं पढ़ी जा रही हैं। मंचों पर कई कवि एक ही चुटकुला अलग-अलग तरह से सुना रहे हैं। समग्र रूप से देखें तो समाज का स्तर ही गिर गया है। कवि भी उसी समाज का हिस्सा है। ऐसे में केवल उससे उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वही अपना स्तर बनाकर रखे। जब स्वस्थ सोच का समाज था तो रचनाएं भी अच्छी आती थीं।
भारतीय होने के तौर पर हम एक तभी होते हैं, जब हमारे ऊपर कोई आफत आती है। जैसे ही परिस्थितियां बेहतर होती हैं हम भारतीय के बजाय ‘इंडीविजुअल” बन जाते हैं। आज हमारे देश में भीड़ तो है मगर उसमें भारतीय ढूंढे नहीं मिलेंगे। इसलिए लगता है कि देश में कुछ न कुछ ऐसा चलता रहना चाहिए, जिससे मीडिया को मसाला मिलता रहे और लोगों को एकजुट होने का मौका।
शायद कश्मीर का मसला इसीलिए इतने दशकों से हमें परेशान कर रहा है। सच कहूं तो कश्मीर की स्थिति ऐसी लुगाई जैसी है, जो खाने, कपड़े, मकान से लेकर ज्वेलरी तक हमसे लेती है। वो ये भी चाहती है कि आपत्तिकाल में हम उसकी हिफाजत भी करें, मगर इतना सब करने के बावजूद वो रहना पड़ोसी के साथ चाहती है। जो सुविधा इस देश के हर व्यक्ति को मिली है, अगर उसे भी वही सुविधा मिलती तो झगड़े की कोई बात ही नहीं होती।
धर्म इसलिए बना था कि आदमी सही रास्ते पर चले। लेकिन धीरे-धीरे आदमी धर्म को भुनाने लगा। अब तो ये स्थिति है कि हम धर्म को भूनने लगे हैं। समाज की चेतना सुप्त होती जा रही है। जरा सोच का दायरा तो बढ़ाओ। आज एक आदमी दूसरे नंबर पर नहीं रहना चाहता था, इसलिए देश के दो टुकड़े कर दिए। एक साधु को लगा कि मुझे दूसरे नंबर के बजाय पहले नंबर पर आना है, इसलिए उसने अपना पंथ बनाकर धर्म के टुकड़े कर दिए। विडंबना ये है कि यही एक और दो की लड़ाई लड़ने वाले अपने-अपने क्षेत्रों में महान कहे जाते हैं।
इस देश के किसानों को कर्ज माफी नहीं अपनी मेहनत का सही दाम चाहिए। बीच के बिचौलिए हटा दिए जाएं तो लोगों को सामान सस्ता मिलने लगे और किसानों को फसल के सही दाम भी मिलें। किसी को मुफ्त में कोई चीज मत दो, वरना वो उस चीज की कभी न तो इज्जत करेगा न ही उसका महत्व समझेगा। मगर अभी तो हमारे देश में ऐसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो लोगों को नाकारा और आलसी बना रही हैं।

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