जबलपुर। मानसून की बेरूखी ने जिले के अन्नदाताओं पर फिर संकट ला दिया है। 40 हजार हेक्टेयर में बोई गई धान पानी नहीं मिलने से उगने से पहले ही खेतों में सड़ गई। हालात इतने विकट हैं कि लगातार उमस के कारण कई गांवों की धान तो अंकुरित तक नहीं हो सकी है।

दिनोंदिन बर्बादी की ओर बढ़ रहे किसान चाहकर भी कुछ करने की स्थिति में नहीं है। कृषि विभाग के मुताबिक 80 प्रतिशत तक धान बर्बादी हो चुकी है। इससे पहले फरवरी में हुई ओलावृष्टि और बारिश ने गेहूं की फसल को 70 प्रतिशत तक तबाह कर दिया था। शुक्रवार को “पत्रिका” ने पनागर और पाटन क्षेत्र के बरौदा, नुनिया कला, सहजपुर, भरतरी सहित जिले के ग्रामीण क्षेत्रों का जायजा लिया।

इस दौरान यहां पर हालात चौंकाने वाले सामने आए। किसान भविष्य में होने वाली बर्बादी को लेकर खासा आशंकित दिखा। हालात बयां करते-करते अन्नदाता रो पड़े। किसी को कर्ज की मार सता रही थी तो किसी को बच्चों की परवरिश की चिंता। कुल मिलाकर मौसम की बेरूखी ने किसानों की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। वहीं किसानों की समस्या को हल करने के जिम्मेदार जिला प्रशासन और कृषि विभाग के अफसर सिर्फ बैठकों में चिंता जता रहे हैं।

योजना ही बनाते रह गया प्रशासन- पूरे जबलपुर जिले में सिंचाई हेतु पानी देने के लिए नहरों का जाल बिछा हुआ है। जिला प्रशासन कृषि एवं सिंचाई विभाग के साथ सिर्फ योजनाएं बनाने और मीटिंग करने में मशगूल है। जून माह के दौरान संभागायुक्त दीपक खांडेकर ने भी सिंचाई हेतु दो बार प्लानिंग करने को कहा, लेकिन हालात देखकर लगता है कि मीटिंग से निकलते ही उनके शब्द भी अधिकारियों के कानों से निकल गए। नहर के हालात देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कब से उसमें पानी नहीं आया है।

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