इंदौर. इंदौर लोकसभा सीट से भाजपा ने आखिरकार शंकर लालवानी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। लालवानी इंदौर शहर के पूर्व जिलाध्यक्ष और आईडीए के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं। भाजपा ने लालवानी को टिकट देकर मध्यप्रदेश में सिंधी वोटों को साधने का प्रयास किया है। बताया जा रहा है कि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन (ताई) और राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय (भाई) इस नाम पर एक राय नहीं हो रहे थे। इसी वजह से प्रत्याशी चयन में पेंच फंस गया था।
इंदौर के स्थानीय नेताओं ने भी लालवानी का खुलकर विरोध किया। ताई ने दिल्ली में डेरा डाला और अपने बेटे मंदार समेत कुछ नए नाम सुझाए, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पाई। लालवानी का नाम पूर्व में शिवराज सिंह चौहान ने दिया था, लिहाजा उन्होंने फिर दखलअंदाजी की और अंतत: रविवार को नाम घोषित कर दिया गया। प्रदेश संगठन ने भी अपनी सहमति दे दी। पार्टी ने इस बार मप्र में 12 सांसदों के टिकट काटे हैं। अब लालवानी का मुकाबला कांग्रेस के पंकज संघवी से होगा।
ताई-कैलाश बोले- 100 फीसदी जीतेंगे लालवानी : टिकट पक्का होने के बाद लालवानी स्पीकर सुमित्रा महाजन के घर पहुंचे। उन्होंने ताई से जीत का आशीर्वाद लिया। महाजन ने कहा- मुझे पूरा विश्वास है, जीत का सिलसिला लगातार नौंवी बार भी कायम रहेगा। इंदौर से चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी लालवानी की जीत का दावा करते हुए कहा- शंकर सौ फीसदी चुनाव जीतेंगे। मैं बंगाल में व्यस्त हूं। समय मिला तो इंदौर भी आऊंगा। इस बीच, लालवानी का विरोध पार्टी में ही नजर आया। आईडीए के पूर्व संचालक विजय मालानी ने कहा कि पार्टी ने जिताऊ उम्मीदवार नहीं दिया है, इसलिए निर्दलीय लड़ने पर एक-दो दिन में फैसला करूंगा।
शिवराजसिंह चौहान: उनके लिए विदिशा सीट अहम रहती थी, लेकिन अब इंदौर सीट ज्यादा प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। खुद तो प्रचार करेंगे ही, बड़े नेताओं को भी इंदौर लाने की कोशिश करेंगे।
सुमित्रा महाजन: ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ मजबूत है। प्रचार करेंगी, लेकिन कितना समय देंगी और किस स्तर पर प्रचार करेंगी, इसी से ग्रामीण वोटों का रुझान तय होगा। मराठी वोट के लिए भी महाजन का प्रचार निर्णायक रहेगा।
कैलाश विजयवर्गीय: प. बंगाल में व्यस्त होने के कारण खुद लड़ने से इनकार किया। अब इंदौर आकर प्रचार का समय मिलना मुश्किल होगा।
मालिनी गौड़: विधानसभा 4 से बड़ी लीड दिलवाने की चुनौती होगी, लेकिन लालवानी खुद इस विधानसभा से दावेदार रहे हैं, इसलिए यहां उनकी खुद की प्रतिष्ठा भी दांव पर। सबसे ज्यादा सिंधी वोटर भी इसी क्षेत्र में हैं।
रमेश मेंदोला: विधायक और लोकसभा प्रभारी रमेश मेंदोला प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से चुनाव जीते। ऐसे में यह बड़ा सवाल होगा कि क्या लोकसभा चुनाव में भी दो नंबर विधानसभा से वे इतनी लीड दिलवा पाएंगे।
इंजीनियर हैं, सांस्कृतिक क्षेत्र में भी सक्रिय : लालवानी ने मुंबई से बी-टैक की पढ़ाई की है। बचपन से संघ से जुड़े हैं। वे इंदौर सिंधी समाज, इंदौर स्वर्णकार समाज, मप्र स्वर्णकार संघ के अध्यक्ष रहे। भारतीय सिंधु सभा के 10 वर्ष तक अध्यक्ष भी रहे। लोक संस्कृति मंच के जरिये संस्कृति के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।
छोटे भाई को हराकर पहली बार पार्षद बने थे लालवानी : लालवानी 1994 में छोटे भाई प्रकाश को हराकर पहली बार पार्षद बने थे। प्रकाश को कांग्रेस ने मैदान में उतारा था। 1999 में कैलाश विजयवर्गीय महापौर थे, उन्होंने लालवानी को जनकार्य समिति का प्रभारी बनाया। 2004 में डॉ. उमाशशि शर्मा के कार्यकाल में वे निगम सभापति बनाए गए। इसके बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि शिवराज सरकार के कार्यकाल में वे दो बार आईडीए अध्यक्ष और एक बार भाजपा के नगर अध्यक्ष भी रहे। इस बीच हर विधानसभा चुनाव में वे चार नंबर क्षेत्र से दावेदारी जताते रहे।
शंकर भाई से लड़े थे पहला चुनाव, घर में ही बंट गए थे वोट : शंकर लालवानी के चुनावी करियर की शुरुआत बड़ी दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण रही। 1994 में भाजपा ने इन्हें सिंधी कॉलोनी के वार्ड से टिकट दिया तो कांग्रेस ने इनके छोटे भाई प्रकाश को उम्मीदवार बना दिया। दोनों सगे भाइयों के चुनाव में आमने-सामने उतरने से परिवार में विकट स्थिति पैदा हो गई। घर में ही दोनों के बीच वोट बंट गए। अंतत: उनकी मां ने शंकर का साथ दिया और फिर चुनाव भी वे ही जीते।