भोपाल। राज्य सरकार के विभाग अब सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी न देने के नए-नए तरीके निकालने लगे हैं। अब राज्य का सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग जानकारी देने से पहले आरटीआई आवेदक से परिचय-पत्र अनिवार्य तौर पर मांग रहा है, जबकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

ऐसा एक मामला हाल ही में सामने आया है।

भोपाल निवासी सुभाष गर्ग ने सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण संचालनालय में सूचना के अधिकार के कानून के तहत गैर सरकारी संगठनों से जुड़ी जानकारी मांगी थी। इसके जवाब में संचालनालय ने उनसे कहा कि जानकारी लेने के लिए परिचय पत्र अनिवार्य तौर पर लाना होगा।

गैर सरकारी संगठनों को फंडिंग से जुड़ी जानकारी मांगी थी

गर्ग ने सामाजिक न्याय विभाग सहित कई अन्य विभागों से गैर सरकारी संगठनों को सरकार द्वारा हो रही फंडिंग से जुड़ी जानकारी मांगी थी, लेकिन परिचय पत्र सिर्फ सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग ने ही मांगा। गौरतलब है कि सामाजिक न्याय विभाग भी गैर सरकारी संगठनों को भारी भरकम राशि अनुदान के रूप में देता है।

सूचना आयोग भी दे चुका है व्यवस्था

केंद्रीय सूचना आयोग भी इस संबंध में कई बार व्यवस्था दे चुका है। 2013 में केंद्रीय सूचना आयुक्त रहे श्रीधर आचार्युलु ने एक केस में कहा था कि सूचना के अधिकार कानून की धारा 3 के तहत भारतीय नागरिकों को ही जानकारी दी जा सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लोक सूचना अधिकारी आवेदक से नागरिकता का प्रमाण अनिवार्य करे।

परिचय पत्र अनिवार्य नहीं होना चाहिए

आवेदक का परिचय पत्र अनिवार्य नहीं होना चाहिए। लोक सूचना अधिकारी चाहें तो अंगूठे के निशान या हस्ताक्षर से आवेदक का सत्यापन कर सकते हैं। इससे तो कई ऐसे लोग सूचना के अधिकार से वंचित रहेंगे, जिनके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी नहीं है।

– रोली शिवहरे, आरटीआई कार्यकर्ता

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