आधार स्कीम का विरोध करने वालों ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि सरकार उन्हें संवेदनशील बायोमेट्रिक्स को ऐसी अनजान प्राइवेट फर्मों को देने को नहीं कह सकती है, जिन पर उसका कुछ खास नियंत्रण नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे इस डेटा का गलत इस्तेमाल होने की आशंका है।
सीनियर ऐडवोकेट श्याम दीवान ने आधार ऐक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच के प्रश्नों के उत्तर देने के दौरान यह बात कही। जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने पूछा, ‘आप इंश्योरेंस लेते हैं तो एक प्राइवेट फर्म को अपनी मेडिकल हिस्ट्री देते हैं, आप बैंक अकाउंट खोलते हैं तो बैंक को डिटेल देते हैं, तो आधार कैसे अलग है?’
इस पर दीवान ने कहा कि इन मामलों में एक व्यक्ति से केवल एक पहचानी हुई कंपनी को सीमित जानकारी देने की उम्मीद की जाती है, दूसरी ओर आधार में एक व्यक्ति को अपने बायोमेट्रिक्स अनजान फर्मों को देने पड़ते हैं जो किसी कानून या नियम के तहत केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
उन्होंने कहा, ‘सरकार के पास इन फर्मों के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं है, न ही UIDAI के पास कॉन्ट्रैक्ट है। बहुत ज्यादा व्यक्तिगत डेटा अनजान फर्मों के पास जा रहा है। डेटा की सुरक्षा कहां है?’ दीवान ने कहा, ‘इसमें कोई कानूनी ढांचा नहीं है। नागरिक के लिए कोई सुरक्षा नहीं है।’
उन्होंने जाली आधार कार्ड उपलब्ध कराने के लिए ब्लैकलिस्ट किए गए 34,000 ऑपरेटर्स पर संसद में दिए गए बयान का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘अगर आपका आधार खो जाता है या उसे स्वीकार नहीं किया जाता या उस तक एक्सेस नहीं हो पाए तो क्या होगा?’
दीवान ने कहा कि एक व्यक्ति का प्राइवेसी का अधिकार उसकी प्रतिष्ठा एक अहम हिस्सा है। उन्होंने कहा, ‘प्रतिष्ठा को छीना या दिया नहीं जा सकता। यह अलग न हो सकने वाला स्वाभाविक अधिकार है।’ उन्होंने कहा, ‘बहुत डिजिटाइज माहौल में सरकार को अनजान प्राइवेट फर्मों से डेटा की सुरक्षा के लिए नागरिकों का एक सहयोगी बनना होगा।’