सोनागिर। जो स्वयं में सूखा हो, वह दूसरे को क्या तृप्त करेगा? आत्मा के परमात्मा बनने की आशा रखो तो कभी प्यासे नहीं रहोगे। प्रभु तो आपके करीब आना चाहते हैं, लेकिन आप ही दो कदम नहीं बढ़ते। आशा उसकी करो, जो आपको प्राप्त हो सके। एक दिन सब कुछ नहीं रहेगा। फिर किस बात का अहंकार करते हो? व्यक्ति को दान तो करना पड़ता है। कितने भी कंजूस हो, एक दिन सब छोड़कर जाना होगा। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज बुधवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा में संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि लोग लाखों का दान तब करते हैं, जब करोड़ों कमाते हैं। कोई करोड़ों का घोटाला कर दान करता है तो उसके दान का परिणाम सोच लो। धर्म तुम्हारा स्वभाव है। परमात्मा बनोगे तो अपने धर्म के पास आना ही पड़ेगा। लोग कहते हैं कि पहले आना चाहिए, फिर दान करेंगे। यह दान की विधि नहीं है। पहले झूठ बोलते हो, हिंसा करते हो, लोगों को अपाहिज बनाने के बाद बोलते हो दान करूंगा। कसाय से भरकर कसाय कम करने की बात करते हो। हम सत्य राह देखना भी चाहें तो मोह और तृष्णा देखने नहीं देगी।
मुनि श्री ने कहा कि महानुभावों जैसे जमीन के नीचे पानी छिपा रहता है उसी प्रकार हर आत्मा में परमात्मा की ज्योति छिपी रहती है। पानी को निकालने के लिए हमें जमीन को खोदना पड़ता है। प्रतिमा को प्रकट करने के लिए उनके दर्शन के करने के लिए पत्थर को तराशना पड़ता है। उसी प्रकार आत्मा में विराजमान परमात्मा के दर्शन करने के लिए मनुष्य को तपस्या व सत साधना से गुजरना पड़ता है। उन्होंनें कहा कि मनुष्य के हर कार्य के पीछे अभिप्राय और भावना अच्छी हो तो वह कार्य प्रार्थना बन जाता है।
मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति प्रलोभन में फंसकर रह जाता है। जो हमारे पास होता है, वह दिखता नहीं। रिश्वत लेते हो और चोरी करते हो, सोचते हो, कोई आपको पकड़े नहीं। दूसरे से तो छिपा सकते हो, स्वयं से कैसे छिपाओगे।