भोपाल ! वर्ष 2011 में जारी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर प्रदेश में शिशु लिंगानुपात में मामूली सुधार देखकर सरकार ने अपनी पीठ थपथापाई थी। वर्ष 2001 के मुकाबले वर्ष 2011 में एक हजार लडक़ों के अनुपात में 931 लड़कियां दर्ज की गई थी। जबकि वर्ष 2001 में यह संख्या 919 थी। हालांकि इसी जनगणना में बाल लिंगानुपात में कोई सुधार नहीं दर्शाया गया है। 2001 में जहां एक हजार लडक़ों के मुकाबले 932 लड़कियां थी, वहीं वर्ष 2011 में यह घटकर 918 रह गई।
इसी तरह राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) – 4 के आंकड़े बताते हैं, कि एनएफएचएस- 3 की अपेक्षा एनएफएचएस-4 में बालिकाओं की संख्या में कमी आई है। एनएफएचएस-3 में जहां एक हजार लडक़ों के मुकाबले 961 बालिकाएं थीं, वहीं एनएफएचएस-4 में इसमें 13 अंकों की गिरावट के साथ एक हजार लडक़ों के मुकाबले 948 लड़कियां रह गई हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से 10 साल के अंतराल में कराये जाने वाला यह सैम्पल सर्वे सबसे विश्वनीय माना जाता है।
इस मायने में एनएफएचएस- 2016 के आंकड़े चिंताजनक है। प्रदेश के नीमच इलाके में सबसे ज्यादा गिरावट 835, जबकि बुंदेलखण्ड के सागर जिले 849 है। यह आंकड़े सरकार को इस ओर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता को बताते हैं।
लिंगानुपात में गिरावट ग्रामीण अंचलों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में अधिक देखी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में 955 के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात 933 है।
प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में बालिका लिंगानुपात सुकून देने वाला है। अलीराजपुर (1023), डिण्डोरी (1004), मंडला (1053), बालाघाट (1067), बैतूल (1010) और उमरिया (1006) हैं। जबकि भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, नीमच, सागर और अशोकनगर की बात करें, तो सागर (849), भिण्ड (855), ग्वालियर (887), अशोकनगर (837), दतिया (893) और मुरैना (895) के साथ सबसे खराब स्थिति में हैं।
इम्पावर्ड एक्शन समूह (ईएजी) के तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार देश में लिंगानुपात की दृष्टि से मध्यप्रदेश सबसे खराब स्थिति में है, जबकि हरियाणा पहले की अपेक्षा बेहतर है। हरियाणा में 9 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। इसी तरह इस ग्रुप ने झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड और आसाम पर भी अध्ययन किया है। जिनमें से तीन राज्यों बिहार (1062), मध्यप्रदेश (948) और उत्तराखण्ड (1015) की तुलना की जाये, तो मध्यप्रदेश सबसे खराब स्थिति में हैं।
यह स्थिति चिंताजनक इसलिए भी है, क्योंकि पिछले 8-9 सालों से प्रदेश सरकार बालिकाओं की शैक्षिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और उनके जन्म के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव के उद्देश्य से कई योजनाओं पर काम कर रही है। लेकिन घटता लिंगानुपात सरकार के इरादों पर पानी फेर रहा है। बेटिया मां-बाप पर बोझ न बने, इसलिए मध्यप्रदेश सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजना 2007 से शुरू की। यहां तक कि यह संदेश देने के लिए, कि बेटियों केजन्म लेते ही सरकार उसकी शिक्षा -दीक्षा के साथ विवाह तक परवरिश करने का दायित्व लेती है- उन्होंने कम लिंगानुपात वाले जिलों में रोड-शो किये और एक बेटी वाले दम्पत्तियों को सम्मानित भी किया। लेकिन इसका कोई सकारात्मक प्रभाव सामने नहीं आया है।
मध्यप्रदेश में घटते लिंगानुपात के पीछे गर्भपात तो नहीं?
इधर, गर्भधारण पूर्व और प्रसूति पूर्व निदान तकनीक (लिंग प्रतिबंध) अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के उद्देश्य से पर्यवेक्षण दल बनाया गया है। जिलों को एमपी ऑनलाइन पीसी एण्ड पीएनडीटी पोर्टल के जरिये 1 जनवरी, 2016 से पीसी एण्ड पीएनडीटी अधिनियम में पंजीयन और रिकार्ड के ई-रिपोर्टिंग के लिए एमआईएस का क्रियान्वयन हो रहा है। बावजूद इसके प्रदेश की राजधानी भोपाल में वर्ष 2015 अप्रैल से 2016 मार्च तक लगभग 15 हजार महिलाओं ने किसी न किसी कारणवश गर्भधारण के 12 सम्पाह के भीतर अपना गर्भपात कराया है। वहीं ग्वालियर में लगभग साढ़े 5 हजार, सतना में लगभग 5 हजार और उज्जैन में लगभग साढ़े 4 हजार महिलाओं ने गर्भपात कराया है। इसी तरह 12 सप्ताह के बाद भी गर्भवती महिलाओं ने गर्भपात कराया है। इस मामले में शिवपुरी जिला अव्वल है, यहां 337 गर्भपात दर्ज किये गये हैं, जबकि 323 गर्भपात के साथ सीधी जिला दूसरे नम्बर पर है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *