पन्ना ! जनपद पंचायत गुनौर अन्तर्गत आने वाली ग्राम पंचायत बराछ का विधाता हार मजरा जहां के आदिवासी आज भी नकरीय जीवन जीने को मजबूर है, जो अपनी सरकारी पहचान पाने और शासन की मूलभूत सुविधाओं का लाभ लेने 11 साल से संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन इतने सालों बाद भी मूलभूत सुविधाएं तो दूर अपनी सरकारी पहचान भी नही बना सकें। ग्राम निवासी शिरोमन आदिवासी ने बताया कि लगभग 11 वर्ष पूर्व हम आदिवासी गुनौर के धरमपुरा गांव में रहते थे लेकिन बाढ़ के कारण हम लोगो के घर नष्ट हो गये, जिस कारण बराछ ग्राम पंचायत के मजरा विधाता हार में रहने लगे।
पीने तक को नही पानी : भीषण पेयजल संकट के चलते जहां इस गांव में एक भी नल जल योजना नही है, ऐसे में यह ग्रामीण नदी नालों के पानी पर निर्भर रहते है। जब यह भी सूख जाते है तब यहां के लोग नालों में गड्डा खोद उसका पानी पीते है। जिस कारण कई परिवार के लोग बीमार हो जाते है। इसके अलावा यहां आंगनबाडी केन्द्र तक नही है, ऐसे मे यह आदिवासी वर्ग अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हंै।
कलेक्टर के निर्देशों का नही असर : नम्बर 2015 में प्रशासनिक मुखिया शिवनारायण सिंह चौहान ने देवरी रनवाहा का निरीक्षण कर जब वापिस लौट रहे थे, तब बराछ के पास बख्तरी मोड़ पर आदिवासियों की समस्या सुनी और इनके निराकरण के निर्देश अधिकारियों को दिये लेकिन इन अधिकारियों ने आज तक इस गांव की सुध नही ली।
बाढ़ विस्थापित में करीब 35 परिवार अपना सब कुछ गवां कर बराछ के विधाता हार में शरण ली, जहां प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मूलभूत सुविधाएं दिलाने का इन आदिवासियों को आश्वासन दिया गया। लेकिन आज तक आश्वासनों पर अमल नहीं दिखाई दी, जिस कारण इनके गांव में न तो बिजली है और न ही सडक़, पानी की सुविधा यहां तक की इनके पास स्वयं का पहचान पत्र तक नही तो अन्य सुविधाओं की क्या बात करें।
ग्राम विधाता हार के करीब आधा सैकडा लोग जिनमें महिलाओं से लेकर बच्चें शामिल रहे, जो मंगलवार जनसुनवाई के दिन कलेक्टर की चौखट पर पहुचे, इन लोगों ने बताया कि गांव में बच्चों को पढऩे के लिए स्कूल तक नही, इन्हे पढऩे के लिए 5 किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है। इन ग्रामीण आदिवासियों ने बताया कि हम लोग तो नहीं पढ़ सकें लेकिन हमारे बच्चें पढ़े और यहां बच्चों के लिए पाठशाला खोली जाये।