ट्रम्प प्रशासन ने एच1बी वीजा जारी करने के नियम सख्त कर दिए हैं. इसका सीधा असर भारतीयों पर पड़ेगा. खास कर जॉब-वर्क करने वाली भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए अल्पकालिक अवधि के लिए भारत से कुशलकर्मियों को बुलाने में भारी दिक्कतें हो सकती है.

अमेरिकी सरकार की नयी नीति के तहत यह साबित करना होगा कि एक या एक से अधिक स्थानों पर जॉब-वर्क की तरह के काम करने के लिए इस वीजा पर बुलाए जा रहे कर्मचारी का काम विशिष्ट प्रकार का है और उसे खास जरूरत के लिए बुलाया जा रहा है.

सरकार यह वीजा ऐसे कर्मचारियों के लिए जारी करती है जो बहुत उच्च कौशल प्राप्त होते हैं और उस तरह के हुनरमंद लोगों की अमेरिका में कमी होती है. सरकार ने गुरुवार को 7 पेज का एक नीतिगत दस्तावेज जारी किया. इसमें एच1बी वीजा के नए नियम जारी किए गए हैं.

इसके तहत अमेरिका के नागरिकता और आव्रजन विभाग को यह वीजा केवल तीसरे पक्ष के साइट कार्य (कार्यस्थल) की अवधि तक के लिए जारी करने की ही अनुमति होगी. इस तरह इसकी अवधि तीन साल से कम की हो सकती है जबकि, पहले यह एक बार में तीन साल के लिए दिया जाता था.

यह नियम लागू हो गया है. इसके लिए ऐसा समय चुना गया है जब, 1 अप्रैल 2018-19 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष के लिए एच1बी वीजा के आवेदन 2 अप्रैल से आमंत्रित किए जा सकते हैं.

अमेरिका में एच-1बी वीजा पाने वालों में 70 प्रतिशत भारतीय हैं. अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले उच्च कुशल विदेशियों के लिए एच-1बी वीजा लोकप्रिय तरीका है.

क्या है एच1बी वीजा?

एच1बी वीजा एक गैर आव्रजन वीजा है जो कि अमेरिकी कंपनियों को विशेष पदों पर विदेशी कर्मचारी रखने की अनुमति देता है. अमेरिका में मुख्य रूप से आईटी कंपनियां भारत और चीन जैसे देशों से हजारों की संख्या में कर्मचारी रखने के लिए हर साल एच 1बी वीजा पर निर्भर रहती हैं.

अमेरिका के इस कदम का ऐसे हजारों विदेशी कर्मचारियों पर प्रभाव पड़ेगा, जिनका ग्रीन कार्ड आवेदन अभी लंबित है. यानी जो लोग अमेरिका में नौकरियां कर रहे हैं और उन्होंने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया हुआ है और उसे अप्रूवल नहीं मिला है, तो एच1बी वीजा की टाइम लिमिट खत्म होने पर उसका विस्तार नहीं किया जाएगा. नतीजतन, ऐसे लोगों को अमेरिका से वापस आना पड़ेगा.

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