भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले दस साल से राज्य सरकार इस पशोपेश में है कि मंदिरों की जमीन पुजारियों को दी जाए या फिर कुछ कृषि भूमि छोड़कर नीलाम कर दी जाए या फिर उन्हें ही लीज पर दे दिया जाए। वर्ष 2008 में सरकार ने जमीन की नीलामी पर रोक लगाई थी, तब से धर्मस्व विभाग एक-एक साल के लिए अवधि बढ़ाता चला आ रहा है।
साधु-संत सरकार के इस कदम का लगातार विरोध कर रहे थे, पर इस बारे में अंतिम फैसला अब तक नहीं हो पाया है। सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जल्द ही पुजारियों को खुश करने के लिए उनकी पंचायत बुलाकर मंदिरों से सरकारी नियंत्रण पूरी तरह खत्म करने की घोषणा करना चाहते हैं।
प्रदेश के मंदिरों की हजारों एकड़ कृषि भूमि की नीलामी को लेकर सरकार दस साल से परेशान है। साधु-संतों के विरोध के चलते राज्य सरकार इस मामले में फैसला ही नहीं कर पा रही है। राजस्व विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव आरके चतुर्वेदी ने धर्मस्व मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के पास मंदिरों की जमीन को नीलाम करने का प्रस्ताव बनाकर भेजा था। मामला संवेदनशील होने के कारण मंत्री यशोधरा राजे ने इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चर्चा के लिए भेज दिया। तब से उक्त प्रस्ताव ठंडे बस्ते में है।
जानकारी के अनुसार तत्कालीन प्रमुख सचिव चतुर्वेदी द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मंदिरों की जमीन का उपयोग वहां के पुजारी कर रहे हैं। यदि सरकार 10 एकड़ भूमि छोड़ कर शेष भूमि को राजस्व पुस्तक परिपत्र (आरबीसी) के प्रावधानों के अनुसार नीलाम कर लीज पर दे तो मंदिरों का बेहतर रख-रखाव और जीर्णोद्धार किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 से पहले आरबीसी के प्रावधानों के अनुसार 10 एकड़ से अधिक कृषि भूमि को नीलाम या लीज पर देकर मंदिरों का रखरखाव किया जाता था। पुजारियों को अपने भरण-पोषण के लिए 10 एकड़ जमीन के उपयोग की अनुमति दी जाती थी।
इसके अतिरिक्त पुजारियों को प्रतिमाह मानदेय देने का प्रावधान है। यह मामला सीएम सचिवालय के पास है, इसका अंतिम फैसला मुख्यमंत्री को लेना है। इस बारे में धर्मस्व विभाग से लेकर कोई भी अधिकारी किसी तरह बातचीत को तैयार नहीं है। उधर, पंडित ओंकार दुबे कहते हैं कि सरकार को मठ-मंदिरों पर किसी भी तरह का कानून नहीं लादना चाहिए। उन्हें सरकारी नियंत्रण से भी मुक्त किया जाना चाहिए।