अपनी कश्ती वहीं डूबी जहां पानी बहुत कम था। यह कहावत कांग्रेस पार्टी पर सटीक बैठ रही है। कांग्रेस चाह रही थी कि वो भाजपा को बेचैन कर दे। लेकिन उसकी अपनी शाख पर बैठे रुस्तमों ने पैर का पसीना सिर पर चढ़ा दिया है।
बड़े अंतराल के बाद ऐसा हुआ जब कांग्रेस ने अपने रुस्तमों के बयान से न केवल किनारा किया, बल्कि पार्टी के मंच से उसका खंडन भी किया। इतना ही नहीं पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और गुजरात के प्रभारी महासचिव व दिल्ली में कांग्रेस के प्रवक्ता अजय कुमार को मणिशंकर अय्यर जैसे वरिष्ठ नेता से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिए कहना पड़ा।
तीन दिन पहले चार दिसंबर को भी मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस की परेशानी बढ़ाई थी। एक तरफ राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष पद का नामांकन दाखिल कर रहे थे और दूसरी तरफ मणिशंकर अय्यर अपने बयान में जहांगीर और औरंगजेब को याद कर रहे थे।
इसके अगले दिन उच्चतम न्यायालय में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की सुनवाई चल रही थी और सुनवाई के दौरान पार्टी के वरिष्ठ नेता, वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में मामले की सुनवाई को 2019 तक टालने की दलील दे दी। यह अदालत का मामला था, लेकिन भाजपा ने लपक लिया और कांग्रेस को अपनी स्थिति स्पष्ट करने में काफी समय लग गया। इतना ही नहीं यह मुद्दा ठीक से मैनेज भी नहीं हो पाया।